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जाए सखाए निक्खन्ते
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नास्तिक इन यथार्थ बातों को गलत कहते हैं, किन्तु आस्तिक नहीं। मुनियों को भी नास्तिकों के समान चिंतन नहीं करना चाहिए अन्यथा उनकी श्रद्धा लोप हो जायेगी और पतित होकर वे कहीं के भी नहीं रहेंगे । हमारे आगम चौदह गुणस्थानों के विषय में बताते हैं और कहते हैं कि परिणामों की धारा ज्यों-ज्यों उत्कृष्ट होती जायेगी त्यो-त्यों आत्मा प्रथम गुणस्थान से क्रमशः ऊँची उठती चली जायेगी, यानी ऊपर-ऊपर के गुणस्थानों को प्राप्त करती जायेगी।
किन्तु अगर भावनाओं में या परिणामों में अश्रद्धा आ गई तो आत्मा कहाँ जाकर गिरेगी यह कहा नहीं जा सकता । गुणस्थानों की दो श्रेणियाँ होती हैं(१) क्षपक एवं (२) उपशम । उपशम श्रेणी वाले बाह्यरूप में तो शांत होते हैं, किन्तु आंतरिक रूप से दोषपूर्ण बने रहते हैं। परिणाम यह होता है कि इस श्रेणी वाले व्यक्ति किसी तरह बारहवें गुणस्थान तक तो पहुँच जाते हैं, किन्तु वहाँ से सीधे नीचे तक आ गिरते हैं। उदाहरणस्वरूप, हम मकान में दूसरी मंजिल पर जाने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ना प्रारम्भ करें और दस सीढ़ियां चढ़ भी जायँ, किन्तु उसके बाद ही असावधानी से पैर फिसल जाय तो दसों सीढ़ियों पर से लुढ़कते हुए फर्श पर आ गिरते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि दस सीढ़ियों तक अगर हम चढ़ गए हैं तो अब नीचे तक आ ही नहीं सकते । इसी प्रकार उपशम श्रेणी वाले व्यक्ति भी दस गुणस्थान तक पहुँच सकते हैं किन्तु जब भावना में विकृति उत्पन्न होती है तो पुनः सबसे नीचे आकर गिर जाते हैं ।
किन्तु क्षपक श्रेणी वाली अन्य आत्माएँ सदा बाहर और अन्दर से शांत एवं समाधि-पूर्ण रहती हैं । इसके फलस्वरूप वे प्रत्येक गुणस्थान को पार करती हुई चढ़ती चली जाती हैं, कभी गिरती नहीं। वे आत्माएँ निरंतर कर्मों का क्षय करती हुईं अन्त में उनसे पूर्ण मुक्त हो जाती हैं।
पर ऐसा होता कब है ? तभी, जबकि व्यक्ति अपनी श्रद्धा को अविचलित रखे तथा विषय-कषाय से परे रहे । आपको याद होगा एक उदाहरण में मैंने बताया था कि जिनपाल और जिनरक्षित से यक्ष ने कहा था-"मैं तुम्हें ले चलता हूँ पर रयणा देवी तुम्हें फुसलाने का प्रयत्न करेगी। उस स्थिति में अगर तुम्हारे मन में फर्क आया तो मैं तुम्हें गिरा दूंगा।"
विषय-कषाय भी ऐसे ही मानव के मन को फुसलाया करते हैं तथा अपनी ओर आकर्षित करने के प्रयत्न में रहते हैं। परिणाम यह होता है कि जो साधक जिस श्रेणी पर होता है, वहीं से नीचे आ जाता है। यहाँ गम्भीरता से • सोचने की बात तो यह है कि व्यक्ति थोड़ा चढ़कर वहाँ से गिरेगा तो चोट कम
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