Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 415
________________ ४०२ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग कहे अमीरिख बारे भावना यों भाव उर, धारे जिनवेण एन, ताको धन, धन, है ॥ बन्धुओ, बारह भावनाओं को मैं आपके समक्ष कुछ समय पहले ही विस्तृत रूप से रख चुका हूँ अतः इनके विषय में पुनः अधिक बताने की आवश्यकता नहीं है। केवल यही कहना है कि जो भव्य प्राणी नौ तत्त्वों को समझ लेते हैं, वे ही अनित्य, अशरण, संसार तथा एकत्व आदि बारह भावनाओं को भाते हुए अपने जीवन को आध्यात्मिक रंग में रंग लेते हैं तथा धन्यवाद के पात्र बनते हैं। इसीलिए नौ तत्त्वों के ज्ञान को जिनधर्म रूपी पान को रंगदार बनाने वाला कत्था-चूना कहा गया है । दान रूपी कपूर भाइयो ! आप नागरबेल के पत्ते का जो पान बनवाते हैं उसमें सुगन्ध लाने के लिए एवं घबराहट, जी मिचलाना आदि-आदि विकारों को नष्ट करने के लिए पिपरमेंट या जिसे पोदीने का फूल भी कहते हैं, वह डलवाते हैं । यहाँ कपूर से आशय सुगन्ध से है और पिपरमेंट में मुँह को सुवासित करने की बड़ी शक्ति होती है। ___तो धर्मरूपी पान के बीड़े में सुगन्ध कौन-सी है ? दान की। आप सन्तमहात्माओं को यथाविधि दान देते हैं, और न दे पाने पर भी देने की भावना रखते हैं तो उसकी उत्कृष्टता से तीर्थंकर गोत्र का भी बंध कर सकते हैं । हमारे शास्त्र स्पष्ट कहते हैं दुल्लहाओ मुहादाई, मुहाजीवी वि दुल्लहा । मुहादाई मुहाजीवी, दो वि गच्छन्ति सुग्गइ ॥ -दशवैकालिक सूत्र गाथा में कहा है-"निस्वार्थ भाव से देने वाला दाता और निस्वार्थ भाव से मात्र संयम-निर्वाह के लिए लेने वाला भिक्षु ये दोनों ही मिलने दुर्लभ होते हैं, किन्तु दोनों ही सुगति या मोक्ष गति के अधिकारी बनते हैं।" वस्तुतः सुपात्रदान मोक्ष प्राप्ति का अमोघ साधन है । शंख राजा ने केवल द्राक्षा का धोया हुआ पानी देकर तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध किया और संसार को सीमित कर लिया । नयसार के भव में भगवान महावीर के जीव ने दान के द्वारा ही सम्यक्त्व का स्पर्श किया था तथा महावीर बनने का बीजारोपण कर दिया था। सुपात्र दान के द्वारा संसार को कम करने वाले उदाहरण एक दो नहीं वरन् अनेक हैं, जिन्हें आगमों के द्वारा जाना जा सकता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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