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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
अन्यत्व, अनित्यत्व एवं संसार की असारता का भाव आत्मा की गहराई से उठा था। परिणाम यह हुआ कि शुभ भावनाएँ क्रमशः और तेजी से चढ़ती हुईं गुणस्थानों की समस्त श्रेणियाँ पार कर गईं और अल्पकाल में ही उन्होंने सर्वज्ञता एवं सर्वदर्शिता हासिल कर ली।
. इस प्रकार उनकी पिछले जन्म की उत्तम करणी थी और थोड़ी जो कसर थी, उसके लिए निमित्त मिल गया। इस अवसर्पिणी काल में मोक्ष का दरवाजा खोलने वाली माता मरुदेवी ही थीं । उनके पश्चात् अनेक भव्य आत्माएँ उस द्वार से अन्दर पहुंची हैं। पर जम्बूस्वामी के जाने के बाद यह दरवाजा बन्द हो गया, ऐसा लोग कहते हैं । यह कथन केवल अपने बचाव के लिए ही है । यथार्थ यही है कि मोक्ष का द्वार तो सदा खुला ही रहता है किन्तु उत्कृष्ट करणी करने वालों का अभाव हो गया है । जिनसे कुछ होता नहीं, वे झट कह देते हैं- "हम क्या करें ? जम्बूस्वामी तो मोक्ष का दरवाजा ही बन्द कर गये हैं।"
अरे भाई ! जब तुम उत्तम करणी करोगे और मोक्ष जाने लायक अपनी आत्मा को बना लोगे तो द्वार को खुलना ही पड़ेगा, कोई रोक नहीं सकेगा। अन्यथा द्वार खुला होकर भी तुम्हारे लिए बन्द जैसा ही है।
इसलिए, मोक्ष का द्वार खुला है या बन्द, इसकी परवाह न करते हुए हमें बोध प्राप्त करके उसे जीवन में उतारना है और बोध तभी हासिल होगा, जबकि सन्त-महात्माओं के द्वारा या सद्गुरुओं के द्वारा वीतराग प्रभु के वचनों को पूर्ण विश्वास एवं मन की स्थिरता के साथ सुना जाय । महापुरुषों के द्वारा आगम के श्रवण से कितना लाभ होता है यह पूज्य श्री त्रिलोक ऋषिजी महाराज ने अपने एक पद्य के द्वारा बताया है । यह पद्य उन्होंने विक्रम संवत् १६२८ में, जबकि वे केवल चौबीस वर्ष के थे, लिखा था
शास्त्र सुने से लहे शिवमारग, श्रावक व्रत अखंडित पाले। जीव अजीव पुण्य अरु पाप को जानत आस्रव बन्ध को टाले ॥ संवर निर्जरा मोक्ष को तारत, उत्तम ज्ञान ले कर्म पखारे। शोभा तिलोक कहे जिन बैठा कि एक पलक में होत निहाले ।
पद्य में कहा है-"जो भव्यपुरुष शास्त्र-श्रवण करेगा वही मोक्ष-मार्ग पर चल सकेगा।" किस प्रकार चलेगा ? इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने आगे बताया है-आगम-श्रवण से व्यक्ति जीव, अजीवादि तत्त्वों को जानेगा तथा मुनिधर्म नहीं भी ग्रहण कर सका तो भी श्रावक के बारहों व्रतों का तो वह पूर्णतया पालन करेगा ही और संवर के मार्ग पर चलता हुआ अपने कर्मों की
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