Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 381
________________ ३६८ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग और असली अनाज है मोक्ष । तपस्वी को कर्मों की सम्पूर्ण निर्जरा करके उनसे मुक्त होना चाहिए न कि राज्यादि की कामना करके जन्म-मरण में वृद्धि करना चाहिए। मराठी में आगे कहा है-'राज्यांती नर्क ।' अर्थात् राज्य पाने पर फिर नरक में जाना पड़ता है। यह बात भी ठीक नहीं है। क्या सभी राजा नरक में गये हैं ? नहीं, जिन्होंने राज्य प्राप्ति के बाद धर्म-विरुद्ध आचरण किया था वे ही नरक में गए, बाकी करणी के अनुसार स्वर्ग या मोक्ष में गये हैं । तो बन्धुओ ! अब हम पुनः अपनी मूल बात पर आते हैं वह है क्षमा । 'गौतम कुलक' ग्रन्थ की गाथा में क्षमा को तप का अलंकार बताया है । कहा है-उग्र तप की शोभा 'खन्ति' यानी क्षमा से ही है। क्षमा के अभाव में वह पूर्णतया श्रीहीन साबित होता है। गांधारी महान् सती एवं पतिपरायणा नारी थी, किन्तु उसने अपने समस्त पुत्रों के मारे जाने पर क्रोधित होकर कृष्ण को श्राप दे दिया कि- "तुमने मेरे कुल का नाम मिटाया है पाण्डवों को सलाह दे-देकर और उनके पक्ष में रहकर । अतः अपनी सम्पूर्ण द्वारिका नगर को परिवार सहित जलते हुए अपनी आँखों से देखोगे।" इस पर कृष्ण ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया-"माता ! वह तो होना ही है, यानी द्वारिका नगरी को जलना ही है, पर आपने क्रोध में श्राप देकर अपनी जीवन भर की तपस्या के फल को क्यों मिटा दिया ?" ___ कृष्ण की बात का रहस्य आप समझ गये होंगे। तप केवल अनशन ही नहीं होता अपितु वह बारह प्रकार का होता है। गांधारी ने उनका पालन किया था तथा पति के अंधे होने पर स्वयं भी अपनी आँखों पर जीवन भर पट्टी बाँधे रही थी। उस तपस्विनी नारी के तप का उसे महान फल मिलता किन्तु जैसा कि अभी मैंने तपस्या में चूक हो जाने के विषय में कहा था, वह भी क्रोध आ जाने के कारण चूक गई। परिणाम यह हुआ कि उसकी तपस्या का फल कृष्ण को श्राप देने के कारण सीमित हो गया और वह तप के सच्चे और महान् फल से वंचित रह गई। ____ इसीलिए कहा गया है कि तप की शोभा और तेजस्विता अक्रोध या क्षमा के कारण ही बढ़ती है और तभी वह अपना समुचित फल प्रदान करता है। आज हम देखते हैं कि लोग उपवास, बेला, तेला या मासखमण भी कर लेते हैं, किन्तु तपस्या के दौरान अगर बालक किवाड़ की साँकल भी बजादे तो तीव्र क्रोध से भरकर कह बैठते हैं—'नालायक ने मेरा सिर खा लिया भगवान इसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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