Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 404
________________ २६ पकवान के पश्चात् पान ++ ++++++ ++ धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो ! आज चातुर्मास की समाप्ति का दिन है यानी आज हमारा चातुर्मास समाप्त हो रहा है । चातुर्मास की समाप्ति पर क्षमत् क्षमापना करने का शास्त्रों में विधान है । सभी साधु-साध्वी जब चार महीने वर्षावास करके फिर अन्यत्र विहार करते हैं तो वे सम्पूर्ण संघ से क्षमा याचना कर लेते हैं । मैं भी आज यहाँ विद्यमान सभी सन्त-सतियों की ओर से आप लोगों से क्षमा-याचना करता हूँ। आप विचार करेंगे, ऐसा क्यों ? ___ इसका कारण यही है कि जहाँ चार बर्तन होते हैं वहाँ थोड़ी बहुत खड़खड़ाहट सावधानी रखने पर भी हो ही जाती है। संत जानबूझकर ऐसा अवसर सामने नहीं आने देते, किन्तु भूल या असावधानी से बोलने-चालने में, व्यवहार में, वाणी में या व्याख्यान में कोई शब्द ऐसे निकलें जिनके द्वारा किसी के भी मन को खेद हुआ हो तो क्षमा याचना करना चाहिए । मैं भी इसीलिए हम सबकी ओर से पूरे संघ से क्षमा माँगता हूँ। छद्मस्थ जीवन में किसी भी व्यक्ति से भूल हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। यथा हमारे मुँह में दाँत भी हैं और जबान भी है। भोजन करते समय दोनों ही अपना-अपना काम करते हैं । हम पूरा ध्यान रखते हैं कि इन दोनों में परस्पर कभी टकराव न हो, क्योंकि इससे हमें ही कष्ट होता है । किन्तु बहुत ध्यान रखने पर भी कभी-कभी दाँतों के बीच में जबान आ जाती है और हमें कष्ट का अनुभव होता है। यद्यपि हम जान-बूझकर ऐसा नहीं करते पर असावधानी से यह हो जाता है। इसी प्रकारं अनजान या असावधानी से ही बोलते समय हमारी वाणी से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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