Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 409
________________ ३९६ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग - वस्तुतः क्षमा धर्म के अन्तर्गत सभी धर्मों का समावेश हो जाता है । किसी कवि ने भी कहा है क्षमा शान्ति सद्भाव स्नेह की, गंगा सी निर्मल धारा । गहरी डुबकी लगा हृदय से, धो डालो कलिमल सारा ।। पद्य में मानव को प्रेरणा दी गई है- "भाई ! क्षमा, शान्ति, सद्भावना और स्नेह रूपी गंगा की निर्मल धारा में गहरी डुबकी लगाकर अपनी आत्मा पर लगी हुई कषायों की मलिनता को धो डालो। ___ बन्धुओ ! पद्य में गहरी डुबकी लगाने के लिए जो कहा गया है, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है । क्योंकि जल की धारा में डुबकी तो कहीं भी लगाई जा सकती है, और शरीर थोड़े पानी में भी डूब जाएगा, यानी भीग जायेगा । पर गहरी डुबकी के लिए ही क्यों कहा गया है, यह विचारणीय है। ____ गहरी डुबकी से यही आशय है कि क्षमा आदि शुभ भावनाएँ गहरी डुबकी लगाने पर ही अन्तर्मानस को भिगो सकेंगी। ऊपर ही ऊपर से यानी जबान से किसी को क्षमा कर दिया, पर आन्तरिक वैमनस्य की ज्वाला शान्त नहीं हुई तो जबान से क्षमा शब्द का उच्चारण करने से कोई लाभ नहीं होगा। . हम देखते हैं कि समाज में नाना कारणों से लोगों के दिलों में विरोध की तीव्र अग्नि सुलग उठती है तथा बोलचाल सब बन्द हो जाती है पर संवत्सरी के दिन कभी-कभी तो स्थानक में ही सन्तों के समक्ष ऐसे व्यक्तियों को लोग आपस में क्षमा-याचना करने के लिए समझाते हैं तथा बाध्य करते हैं। परिणाम यह होता है कि सन्तों की तथा समाज के अनेक सदस्यों की उपस्थिति के कारण लोक-व्यवहार से दो विरोधी एक-दूसरे से क्षमा-याचना कर लेते हैं । किन्तु वह क्षमा माँगने और देने का भाव केवल वचन तक और हाथ जोड़ने के कारण शरीर तक ही सीमित रहता है । मन तक नहीं पहुँचता यानी क्षमा मन से नहीं मांगी जाती और मन से ही दी भी नहीं जाती। अतः ये क्रियाएँ दिखाने की और ऊपरी होती है। इसीलिए कवि का कहना है कि क्षमा आदि शुभ भावनाओं की धारा में गहरी डुबकी लगाओ, अर्थात् मन की गहराई से या मन से क्षमा माँगो और दूसरों को प्रदान करो । अन्यथा इस क्रिया से कोई लाभ नहीं होगा और आत्मा का कालुष्य रंचमात्र भी कम नहीं हो पाएगा। तो भाइयो ! हमने सद्धर्म रूपी पान के बीड़े में डलने वाली इलायची और खैरसार के विषय में जान लिया अब तीसरी कौनसी चीज इसमें डाली जाती है, यह देखना है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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