Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 410
________________ पकवान के पश्चात् पान ३९७ सत्यवाणी रूपी लवंग पान में लौंग बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य करती है । दीक्षा लेने के बाद तो मुझे काम नहीं पड़ा पर बचपन में देखता था कि पान का बीड़ा बनाकर यानी पत्ते को लपेटकर उसमें ऊपर से लौंग टोंच देते हैं । जिससे पान का पत्ता खुलता नहीं और उसमें रखी हुई चीजें इधर-उधर नहीं गिरतीं। लौंग का कितना सुन्दर और दोहरा उपयोग है ? एक तो पत्ते को बन्द रखना, दूसरे मुह का जायका ठीक करना। सत्यवाणी रूपी लौंग भी धर्मरूपी पान के बीड़े में इसी प्रकार दोहरा काम करती है । प्रथम तो वह पान में डले हुए क्षमारूपी खैरसार, दयारूपी इलायची और अन्य चीजों को मजबूती से बाँधे रहती है, इधर-उधर नहीं होने देती। दूसरे सच्चाई में दिल और दिमाग को शुद्ध रखती है। एक और भी विशेषता लौंग की होती है । आप साधारणतः लौंग हमेशा मुंह में डालते हैं अतः जानते ही होंगे कि वह चरपरी या तीखी होती है अतः जीभ पर तेज तो जरूर लगती है किन्तु मुँह को एकदम साफ कर देती है तथा पकवान आदि कुछ भी पहले खाया हो, उसके स्वाद को मिटाकर जायका अच्छा करती है। यही हाल सत्य रूपी लवंग का भी है । सत्य सुनने में कटु लगता है और सत्यवादी की बात से लोग नाराज होकर उसके विरोधी बन बैठते हैं, किन्तु वे यह नहीं सोचते कि यह सत्य ही हमारी आत्मा का भला करने वाला है । जिस प्रकार डॉक्टर इन्जेक्शन लगाता है तो पलभर के लिए रोगी को वह कष्टकर एवं तीखा महसूस होता है पर उसके बाद ही इन्जेक्शन के प्रभाव से बढ़ती हुई बीमारी भी एकदम रुक जाती है । शरीर के किसी हिस्से में गोली लग जाती है और कुशल डॉक्टर तुरन्त चीरा लगाकर उस गोली को निकालता है । चीरा लगाते समय या ऑपरेशन करते समय बहुत कष्ट होता है और शरीर को वह असह्य महसूस होता है। किन्तु कुछ समय की पीड़ा गोली के विष को बाहर निकाल देती है और शरीर का वह अंग निर्विष बन जाता है । इसी प्रकार कुमार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को सन्त-महापुरुष कड़वे शब्द कह देते हैं पर वे उस व्यक्ति के हृदय से कषाय रूपी विषों को बाहर निकालने के लिए कहे जाते हैं । गोली के शरीर से न निकलने पर उसका विष जिस प्रकार अन्दर ही अन्दर फैलकर व्यक्ति के प्राणान्त का कारण बन जाता है, इसी प्रकार कषायों का कालकूट भी आत्मा के अन्दर ही अन्दर फैलकर उसे बारबार मरण का कष्ट पहुंचाता है। स्पष्ट है कि शरीर के किसी अंग में लगी हुई गोली तो एक बार ही मनुष्य को मारती है, पर कषायों के कारण आत्मा को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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