Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 403
________________ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग एक उदाहरण से भी इस बात को समझाया गया है कि एक दीवाल पर कुए का और नाव का चित्र होता है, पर कुए का चित्र मनुष्य को पानी में डुबा नहीं सकता और नाव का चित्र उसे नदी से पार नहीं कर सकता । इसी प्रकार सद्गुण रूपी रत्नों से रहित व्यक्ति भी दीवाल पर लगे हुए चित्र के समान है जो कि नर - रत्न दिखाई देने पर भी अपना आत्म-कल्याण नहीं कर सकता । ३६० इसलिए हमें नाम के नर-रत्न न कहलाकर सद्गुण रूपी रत्नों को धारण करना चाहिए और वे तभी अपनाये जा सकेंगे, जबकि जौहरी के समान उन्हें गुणावगुणों में से छाँटकर परखना पड़ेगा और जीवनसात् करना होगा । सद्गुण रूपी रत्नों के अभाव में नर-रत्न कहला भी लिये तो उससे आत्मा का क्या भला होगा ? कुछ भी नहीं । यह देह छूटते ही फिर न जाने किन-किन योनियों में जाना पड़ेगा और घोर कष्ट सहन करना होगा । इसलिए उचित यही है कि हम संवर के मार्ग पर बढ़ें और आत्मा को सदा के लिए इस संसार रूपी सराय से हटाकर अपने सच्चे घर मोक्ष की ओर ले चलें । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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