Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 395
________________ ३८२ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग है। पुण्य को भी मोक्ष में जाने से पहले निश्चय ही छोड़ना पड़ेगा। किंतु अभीअभी मैंने आपको बताया था कि यात्री धन के द्वारा अपने लिए सीट रिजर्व करा लेता है। जब वह टिकट लेता है तब रुपया-पैसा वह बुकिंग ऑफिस के कर्मचारी को दे देता है और फिर बिना पैसे भी निस्संकोच जाकर अपनी सीट पर बैठ जाता है तथा अपने गंतव्य की ओर चला जाता है । इसी प्रकार जीवात्मा पहले पुण्य-संग्रह करता है और उस पुण्य-धन को देकर मानो वह अपने लिए उच्चगति या मुक्ति के लिए भी अपना स्थान नियत करवा लेता है। जब वह अपना स्थान नियत करवाता है तब पुण्य-रूपी धन वहीं खर्च कर देता है, यानी उसे छोड़ देता है। इस प्रकार वह पुण्य की भी निर्जरा करके यानी उसे छोड़कर अपना रिजर्वेशन करा लेता है और फिर अव्याबाध गति से अपने सच्चे घर की ओर रवाना होता है। आगे कविता में कहा हैजो अफसर ड्यूटी तजता है, वह निज पद से गिर जाता है । त्यों मनुष्य कृत्य को तजे मनुज, वह मनुजाधम कहलाता है । कहते हैं कि अगर कोई उच्च पदस्थ अधिकारी अपने कर्तव्यों का समीचीन रूप से पालन नहीं करता या कि अपने मातहत कर्मचारियों से बराबर काम लेकर सुव्यवस्था नहीं रख पाता, वह अपने पद से हटा दिया जाता है तथा उस उच्च पद के छूट जाने से वह पुन: साधारण श्रेणी का व्यक्ति बन जाता है । फिर न उसके पास सत्ता रहती है, और न ही वह किसी पर अनुशासन करने योग्य ही रह जाता है। यही हाल मनुष्य-जीवन का भी है। जिस प्रकार अफसर अपनी पूर्व में रही हुई योग्यता से अफसरी तो पा लेता है, किन्तु फिर सत्ता के घमंड में आकर अपना कर्तव्य-पालन नहीं करता, अनाचरण करता है या शासन ठीक नहीं चलाता तो उसे पद से हटकर नीचे के स्तर पर आना पड़ता है। इसी प्रकार जीवं भी अपने पूर्व पुण्यों के द्वारा योग्यता की डिग्री लेकर मानव के रूप में मन और इन्द्रियों पर अधिकार प्राप्त करता है और उसे इन सबकी सहायता से आत्म-कल्याणं करने का कार्य उसे सौंपा जाता है। किन्तु, जब मनुष्य संसार के असंख्य मनहीन, इन्द्रियों से हीन एवं पशु-पक्षी आदि अभागे प्राणियों को देखता है तो उसे अपनी योग्यता पर या अपनी सत्ता पर घमंड हो जाता है और वह आत्म-कल्याण के कार्य को भूलकर मन और इन्द्रियों को अनाचार में प्रवृत्त कर देता है। इन सबको आत्म-कल्याण के कार्य में न लगाकर पाप-कार्यों में लगाता है अतः उसे अपनी अयोग्यता एवं शासन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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