Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 393
________________ ३८० आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग के लिए जैसे समान होता है, वैसे ही संसाररूपी सराय के जीव-यात्रियों के लिए भी समान होता है । यानी जितने दिन के लिए उसे शरीररूपी कमरा मिला होता है, उतने ही दिन बाद उसे शरीर छोड़ना पड़ता है। जबर्दस्ती किसी भी प्रकार नहीं रहा जा सकता। यात्रियों में अन्तर यहाँ एक बात जानना महत्त्वपूर्ण है कि दोनों प्रकार के यात्रियों में एक बड़ा जबर्दस्त अन्तर होता है । वह यह कि आपकी इन धर्मशालाओं में जो यात्री आते हैं, वे स्वयं ही सराय छोड़कर अपने घर जाने के लिए व्यग्र रहते हैं और जिस उद्देश्य के कारण वे उसमें ठहरते हैं, उसके पूर्ण होते ही अपने घर चले जाते हैं । किन्तु इस संसाररूपी सराय के शरीररूपी कमरे में जो जीव-यात्री आकर कुछ दिन या कुछ वर्षों के लिए ठहरता है, वह अपने असली घर या शिवपुर नगर की याद नहीं करता और वहाँ जाने का प्रयत्न भी नहीं करता। परिणाम यह होता है कि समय की अवधि समाप्त होते ही वह कालरूपी चौकीदार के द्वारा जबर्दस्ती निकाल दिया जाता है, तथा उसके बाद अपने सच्चे घर का मार्ग न जानने के कारण इधर-उधर यानी भिन्न-भिन्न योनियों में भटकता हुआ कष्ट पाता रहता है। दूसरे शब्दों में यह जीव-यात्री अपना जितना भी पुण्य-रूपी धन साथ में लेकर आता है, उसे मौज-शौक व सैर-सपाटे में खर्च कर देता दे और फिर जब यहाँ से निकाला जाता है तब कंगाल हो जाने के कारण और अपना घर व नगर बहुत दूर होने के कारण गाड़ी-भाड़े का टिकिट नहीं खरीद पाता तथा यत्र-तत्र भटकता रहता है । आप भली-भाँति जानते हैं कि जिसके पास द्रव्य-धन नहीं होता उस कंगाल मुसाफिर को प्रथम तो बस या रेल में बैठने ही नहीं दिया जाता और अगर कभी वह आँख चराकर बैठ भी जाता है तो किसी भी स्टेशन पर धक्के मार कर उतार दिया जाता है, तो रुपये-पैसे के अभाव में जहाँ एक यात्री यहाँ की छोटी-सी यात्रा भी नहीं कर पाता तो फिर पुण्य-रूपी परोक्ष धन के अभाव में जीव मोक्ष तक की महान् लम्बी यात्रा कैसे कर सकता है ? इस तरह किसी भी प्रकार उसका अपने घर जाना सम्भव नहीं होता। एक और बात यह भी है कि द्रव्य-धन तो फिर भी सहज ही कमाया जा सकता है या चोरी और डाके से किसी का छीना जा सकता है, किन्तु पुण्य-रूपी धन कमाने में बड़ी कठिनाई होती है और वह किसी और का छीना या चुराया भी कभी नहीं जा सकता। इसीलिए कवि ने कहा है-'तुम हिल-मिल कर धर्म कमाओ !' क्योंकि यहाँ से जाना जरूर पड़ेगा और खाली हाथ अपने घर नहीं पहुंच सकोगे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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