Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 396
________________ ऐरे, जीव जौहरी ! जवाहिर परखि ले ३८३ हीनता के कारण मानव जीवन रूपी उच्चपद से हटाकर निम्न श्रेणी के नारकीय या तिर्यंच जीवों के साथ कर दिया जाता है । यह इसीलिए होता है कि वह मानव बनकर मानवोचित कार्यों को नहीं करता तथा अधम मानव बनकर कुकृत्य में संलग्न रहता है और अपने मातहत मन और इन्द्रियों को भी निरंकुश बनाता हुआ अपने सौंपे गये उत्तम कार्य को पूर्ण नहीं करता। अंग्रेजी में एक कहावत है"When duty calls, we must obey." अर्थात्- जब अपना फर्ज हमें बुलाता है तो उसकी आज्ञा का पालन अवश्य करना चाहिए। आशय यही है कि प्रत्येक मानव का फर्ज मन और इन्द्रियों की अफसरी पाकर अपने आत्म-गणों के द्वारा उत्तम कार्य करना है जिससे उत्तम गति हासिल हो सके। पर ऐसा न करने से यानी कर्तव्य से च्युत हो जाने से अधिकार छिन जाता है और वह मानव-जन्म रूपी उच्च पद से हटा दिया जाता है। ___ इसलिए बन्धुओ ! यह दुर्लभ मानव-जीवन मिला है तो हमें इसे निरर्थक नहीं जाने देना चाहिए तथा जिस प्रकार जौहरी रत्नों की सच्ची परीक्षा करके उनसे लाभ उठाता है, इसी प्रकार हमें भी आत्म-गुण रूपी अमूल्य रत्नों की पहचान करके इनकी कीमत वसूल कर लेनी चाहिए। ___शास्त्र विशारद पूज्य श्री अमीऋषि जी महाराज ने भी मानव को जौहरी की उपमा देकर कहा है कि-"बावले प्राणी ! तेरे पास तो अमूल्य जवाहरात हैं, जरा इनकी परख कर और इनसे लाभ उठा ।” कवि श्री ने स्वयं ही मनुष्य को बताया है संयम सुहीरा नील नियम विद्रुम व्रत, ___ गौमेध विराग ज्ञान मानिक हरखि ले । तप जप मोती ध्यान पन्ना नय लसनिया, अभय सुदान पुखराज ही निरखि ले ॥ कहे अमीरिख दुःख दारिद्र पलाय ऐसो, समझि पदारथ अमोल पास रखि ले। पूरण भरी है जिन धरम मंजूस यह, ". ऐरे जीव जौहरी जवाहिर परखि ले ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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