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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
अपने नाम सहित पत्थर पर लिखवाकर दीवाल में लगवा देते हैं कि हर आनेजाने वाला सदा आपको दान-दाता के रूप में याद करे । और तो और, आप मानता करते हैं कि अमुक रोग मिट जाने पर या व्यापार में इतना नफा होने पर मैं तेला करूँगा या अमुक तीर्थ पर जाकर भगवान के दर्शन करूंगा।
इस प्रकार धर्म-क्रियाएँ और तपादि करने से पूर्व ही आप अपनी करनी के फल को रजिस्टर्ड करा लेते हैं फिर भला आप ही बताइये कि आपने जितनी शर्त रखी हैं, उससे अधिक आपको कैसे मिलेगा। यह तो एक प्रकार से धर्म की नौकरी हो गई कि इतना काम करेंगे और इतना लेंगे । यही होता है न नौकरी में ? किन्तु बिना पैसे की बात किये अगर कोई सेवा-भावना से कार्य करता है तो उसे अपनी आशा से अधिक भी मिल जाता है अगर देने वाला उत्तम विचारों का और कार्य की कद्र करने वाला हो तो।
तनिक ध्यान से समझिये कि धर्म भी आपके कार्यों का फल देने वाला दाता है और उसकी उत्तमता में तो सन्देह ही नहीं है कि वह आपकी धर्मक्रियाओं का फल कम देगा किसी द्वष या वैर के कारण । इसलिए अगर निस्वार्थ भाव और बिना शर्त या निदान के आप त्याग, तपस्या या अन्य शुभ क्रियाएँ करेंगे तो धर्म के जैसा देने वाला आपको और कौनसा मिलेगा, जो कि आपकी निस्वार्थ सेवा से सन्तुष्ट होकर मोक्ष भी दे सकता है, देता भी आया है । पर उन्हीं को, जिन्होंने उसकी आराधना का धन, जन, यश या स्वर्ग आदि के रूप में कोई फल नहीं चाहा है।
तो मैं आपको बता यह रहा था कि प्राचीनकाल में आज के समान व्यक्तियों में दिखावे की, बेईमानी की, यश प्राप्ति की और किसी व्यक्ति को, मालिक को या धर्म और भगवान को भी धोखा देने की भावना नहीं होती थी। एकान्त रूप से समस्त व्यक्तियों की बात मैं नहीं कह रहा हूँ क्योंकि कृष्ण के समय में कंस, राम के समय में रावण, युधिष्ठिर के समय में दुर्योधन और भगवान महावीर के समय में गोशालक जैसे होते चले आ रहे हैं । मैं तो केवल यह बता रहा हूँ कि जिस प्रकार आज रावण, कंस और गोशालक जैसे व्यक्तियों की भरमार है तथा राम, कृष्ण और महावीर सरीखे बिरले ही मिल सकते हैं, उस प्रकार पूर्वकाल में अच्छे व्यक्ति अधिक मिलते थे बुरे कम।
अच्छाई से मेरा अभिप्राय यहाँ हृदय की सरलता से है । आज भी छोटेछोटे गाँवों में सरल व्यक्ति अधिक मिलते हैं । हृदय की सरलता अनेक गुणों को जन्म देती है तथा विद्यमान दोषों को मिटाने की क्षमता रखती है ।
श्री उत्तराध्ययन सूत्र में कहा भी है
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