Book Title: Anand Pravachan Part 07
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 375
________________ ३६२ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग बड़ी कठिनाई से वह व्यक्ति शांत हुआ पर उसने संत को फिर कभी नहीं छेड़ा और उनका शिष्य बनकर स्वयं भी आत्म-शुद्धि में लग गया। ___ बन्धुओ, महापुरुष ऐसे ही होते हैं जो स्वयं तो सन्मार्ग पर चलते ही हैं, साथ ही अपने सदाचरण से प्रभावित करके औरों को भी सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं । अपने शुभ आचरण से ही वे तीर्थ के रूप में संघ का सदस्य बनते हैं और उसे पूजनीय बनाते हैं। किन्तु आप इस बात से यह न समझें कि केवल साधु या महात्मा ही ऐसा कर सकते हैं और वे ही संघ के मुख्य अंग हैं। चारों तीर्थ समान है ? संघ के सदस्य के रूप में साधु-साध्वी, श्रावक और श्राविका, सभी समान महत्त्व रखते हैं और सभी अपने सुन्दर आचरण से स्वयं अपनी आत्मा को तो निर्मल एवं कर्म-रहित बनाते ही हैं, साथ ही संघ के गौरव में भी चार चाँद लगा देते हैं । केवल एक उदाहरण से ही आप यह बात समझ लेंगे । वह उदाहरण इस प्रकार दिया जा सकता है कि एक छत है और वह चार विशाल खंभों के सहारे टिकी हुई है। अब आप ही बताइये कि उन चार थंभों में से कौन सा खंभा अधिक महत्त्वपूर्ण और कौन-सा कम महत्त्व रखने वाला है ? __ आप निश्चय ही यह उत्तर देंगे कि कोई भी खंभा ज्यादा या कम महत्त्व नहीं रखता, चारों ही समान महत्त्व रखने वाले हैं। साथ ही आप यह भी कहेंगे कि अगर एक भी खंभे में दरार आ जाये तो छत को खतरा हो जाता है और उसके टूट जाने से छत गिर जाती है, टिक नहीं सकती। ___बस, यही हाल संघ का है । साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकाएँ, ये चारों ही संघ रूपी छत के चार विशाल स्तम्भ हैं। चारों ही समान महत्त्व रखते हैं और कोई भी किसी से कम नहीं है । इसलिए अगर एक भी खंभा अगर कमजोर हो जाय यानी इनमें से कोई भी अपने कर्त्तव्य को भूलकर अशुभ में प्रवृत्त हो जाय तो संघ रूपी छत खतरे में पड़ जाती है और उसके नष्ट होने की संभावना पैदा हो जाती है। ___ यह समझकर आपको अपने गौरव एवं महत्त्व का ध्यान रखते हुए सदा यही खयाल रखना चाहिए कि हमारा कर्तव्य क्या है और मन, वचन, धन या शरीर, इनमें से किस-किसके द्वारा हम संघ की सेवा कर सकते हैं ? आपके पास धन है तो उसे ब्याह-शादी या अन्य इसी प्रकार के कार्यों में कम से कम जरूरत से अधिक या व्यर्थ खर्च न करके संघ में जो असंख्य अभावग्रस्त प्राणी हैं, उनके अभावों को दूर करने में लगायें तो अच्छा है। अपना धन अपने ही लिए खर्च Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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