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सोचो लोक स्वरूप को
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वैद्यजी ने शांति से उत्तर दिया- 'डरो मत, मेरी दवा लेते समय तुम्हें कोई व्यसन छोड़ना नहीं पड़ेगा।"
लड़का यह सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ और दवा लेने लगा। परहेज तो कोई था नहीं अतः मदिरा-मांसादि नशीली चीजों को भी वह काम में लेता रहा । वैद्यजी ने भी कुछ नहीं कहा और धैर्यपूर्वक दवा देते रहे।
___ एक दिन अचानक ही बीमार लड़के ने महात्माजी, जो कि बड़े अनुभवी चिकित्सक भी थे, उनसे पूछा – “अब तक जितने वैद्य-हकीम आये, सब मुझे शराब आदि व्यसन छोड़ने के लिए कहते रहे अतः मुझे चोरी-चोरी उन्हें लेना पड़ा । किन्तु आप तो बहुत अच्छे वैद्य हैं कि मुझे कुछ भी छोड़ने के लिए नहीं कहते । पर मैं सोचता हूँ कि आपने मुझे व्यसन छोड़ने के लिए क्यों नहीं
कहा ?"
____ अब सुन्दर सुयोग पाकर महात्मा जी ने कहा- "बेटा ! व्यसन तो बहुत लाभकारी होते हैं इसीलिए मैंने तुमसे उन्हें छोड़ने के लिए नहीं कहा।"
लड़का चकित हुआ और बोला-"व्यसन लाभकारी होते हैं वह कैसे ? मुझे तो यह बात आज तक किसी ने नहीं बताई । सभी इन्हें बुरा-बुरा कहते हैं । आप ही बताइये कि इनमें कौन-कौन से लाभ या गुण हैं ?"
वैद्यजी बोले- "भाई ! शास्त्रों में व्यसनों के चार गुण बताये गये हैं । जो मनुष्य व्यसनी एवं नशेबाज होता है उसके यहाँ एक तो चोर नहीं आते, दूसरे शरीर मोटा-ताजा हो जाता है, तीसरे उसे पैदल नहीं चलना पड़ता और चौथा सबसे बड़ा लाभ यह है कि उसे वृद्धावस्था का दुःख ही नहीं उठाना पड़ता।"
बीमार लड़का महात्माजी की ये बातें सुनकर और भी अधिक चकित हुआ और आश्चर्य से पूछने लगा-"महात्मा जी ! ये चारों लाभ किस प्रकार होते हैं, जरा समझाकर बताइये ।"
वैद्यजी बोले-“देखो ! जो व्यक्ति नशा करता है उसे खाँसी का ऐसा महान् रोग हो जाता है कि रातभर खाँसते रहने से चोर यह समझकर घर में नहीं घुसते कि कोई व्यक्ति जाग रहा है । दूसरे व्यसनी का शरीर सूजन से फूल जाता है अतः वह खूब मोटा-ताजा दिखाई देता है। तीसरा लाभ इस प्रकार है कि नशेबाज की शारीरिक शक्ति इतनी क्षीण हो जाती है कि वह चल ही नहीं पाता अतः उसे पैदल नहीं चलना पड़ता और चौथा या सबसे बड़ा लाभ यही
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