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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
चित्रकार भी समझ गया कि कुसंगति के कारण ही उस सुन्दर बालक में और आज के इस नौजवान में जमीन-आसमान का अन्तर आ गया है।
तो बन्धुओ ! संगति के कुप्रभाव से बचने के लिए ही कवि ने मनुष्य को चेतावनी दी है कि मिथ्यात्व से दूर रहो ! दूसरे शब्दों में, मिथ्यात्वी की संगति भूलकर भी मत करो; अन्यथा तुम्हारा ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र सभी खटाई में पड़ जाएँगे । परिणाम यह होगा कि मनुष्य-जन्म मिलकर भी न मिले जैसा होगा और जीवात्मा को चौरासी के चक्कर में पड़ना पड़ेगा।
आगे कहा है-"वे नर-रत्न पुनः-पुनः धन्यवाद के पात्र हैं जो रत्नत्रय प्राप्त करते हैं और प्राप्त करने के पश्चात् यक्ष की तरह सजग रहकर कषायों से उन्हें बचाते हैं । कषायों और विषय-विकारों को वे आत्मा के लिए विष के समान मानते हैं तथा उनकी ओर दृष्टिपात भी नहीं करते। ऐसे व्यक्ति ही सतत बोधि-दुर्लभ-भावना भाते हुए अपना जीवन सफल कर लेते हैं, अर्थात् अक्षय सुख के धाम मोक्ष में पहुंच जाते हैं, जहाँ से कभी लौटना नहीं पड़ता।" __हमें भी इसी प्रकार की भावना रखते हुए महामुश्किल से प्राप्त हुए इस जीवन का पूरा लाभ लेना है और अपने उद्देश्य को सफल बनाना है ।
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