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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
अन्तरतर में आस्रव विचार कर भाई,
क र आस्रव को निर्मूल मुक्ति अनुयायी ! कहा गया है- "बंधु ! मिथ्यात्व या अश्रद्धा का त्याग करके राग-द्वेष रहित, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, सम्पूर्ण आत्मगुणों से युक्त एवं लोक-कल्याण की भावना रखने वाले प्रभु की यथार्थ, सत्य एवं हितकारी वाणी पर विश्वास रखते हुए धर्म-मार्ग का अनुसरण करो।" ___ "वह भव्य प्राणी धन्य है, जिसने ऐसी अटल श्रद्धा प्राप्त कर ली है एवं अपने सम्यक्ज्ञान के द्वारा संसार-भ्रमण के बीज आस्रव के दुःखद स्वरूप को पहचान लिया है। और जिसने आस्रव को पहचान लिया है उसके लिए अन्य तत्त्व अज्ञात नहीं रहे । परिणाम यह हुआ है कि उसने मानव-जीवन का इच्छानुसार पूर्ण लाभ हासिल कर लिया है । अतः तुम भी अन्तर की गहराई से आस्रव को समझो तथा उसके सम्पूर्ण मार्गों को अवरुद्ध करके संवर के पथ पर प्रमाद रहित होकर बढ़ो । प्रमाद भी आस्रव का बड़ा जबर्दस्त कारण है और उसका अभिन्न सहचर है।" इसीलिए मुख्य रूप से कहा गया है
ओ मुक्तिमार्ग के पथिक न गाफिल होना, मंजिल तक पहुँचे बिना न पथ में सोना । चेतन गुण चोरेगी प्रमाद की सेना, सोने का भारी मूल्य पड़ेगा देना । दस्यु प्रमाद ने गहरी ताक लगाई।
कर आस्रव को निर्मूल मुक्ति अनुयायी ।। कितनी मार्मिक एवं यथार्थ चेतावनी है ? कवि ने बड़े सशक्त एवं हितकर शब्दों में कहा है-"अरे, मुक्ति की आकांक्षा रखने वाले पथिक ! तू बिना समय मात्र का भी प्रमाद किये अविराम गति से इस मुक्ति-पथ पर बढ़ते रहना और एक क्षण के लिए भी प्रमाद न करते हुए, तब तक अग्रसर होना, जब तक कि मन्जिल न मिल जाय ।”
आगे कहा है-"अगर तू पलभर के लिए भी गाफिल हो गया तो प्रमाद रूपी चोर अपने अन्य साथियों सहित तेरे समस्त आत्म-गुण चुरा लेगा और उस पलभर की निद्रा का तुझे अनन्त काल तक भव-भ्रमण के रूप में भारी मूल्य चुकाना पड़ेगा। क्योंकि, जिस प्रकार जड़-द्रव्य के लिए चोर-डाकू ताक लगाये रहते हैं कि यात्री जरा-सा गाफिल हो या सो जाय तो धन लूट लें, ठीक इसी
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