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सामान सौ बरस का, कल की खबर नहीं
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ग्राहक ने समझा फ्रेंकलिन मजाक कर रहे हैं अतः वह बोला-"अच्छा अब ठीक-ठीक बताइये कि इसका मैं क्या दाम दूं?"
"डेढ़ डॉलर ।" तुरन्त ही फ्रेंकलिन बोल उठे ।
ग्राहक चौंक पड़ा और बोला-"यह क्या बात है ? अभी आपने स्वयं तो इसका मूल्य सवा डॉलर कहा था और अब डेढ़ डॉलर कह रहे हैं ?"
फ्रेंकलिन ने स्पष्टतापूर्वक उत्तर दिया- "मेरे समक्ष समय की बहुत बड़ी कीमत है क्योंकि मैं इसका मूल्य जानता हूँ और अब आप मेरा जितनाजितना समय नष्ट करेंगे, पुस्तक की कीमत उतनी ही बढ़ती जाएगी।"
पुस्तक का खरीददार यह सुनकर अत्यन्त लज्जित हुआ और चुपचाप डेढ़ डॉलर देकर पुस्तक ले गया ।
जान-बूझकर कुए में... समय की कद्र करने वाले महापुरुष इसी प्रकार अपना एक-एक क्षण सार्थक करते हैं और धन का या तन का पूरा-पूरा लाभ उठाते हैं। वे भली-भाँति जानते हैं कि ये दोनों अनित्य हैं और अगर इन्हें निरर्थक जाने दिया तो अन्त में पश्चाताप करना पड़ेगा।
आप कहेंगे कि-"यह तो हम भी जानते हैं और देखते ही हैं कि लक्ष्मी और जिन्दगी दोनों ही अनित्य व अस्थिर हैं, भला इसमें कौन-सी नई या आश्चर्यजनक बात है ?"
आपका विचार करना ठीक भी है पर जो ठीक नहीं है वह यही कि आप जानते-बूझते हुए भी उल्टे कार्य करते हैं । आप जानते हैं कि धन अनित्य है, यह एक दिन हमें छोड़कर जा सकता है या हमी इसे छोड़कर जाएँगे। किन्तु फिर भी आप हजार हों तो लाख और लाख हों तो करोड़ रुपये बनाने के फेर में सदा रहते हैं । धन आत्मा के साथ नहीं जाता, यह जानते हुए भी तो आप इसका पीछा नहीं छोड़ते । क्या आप ऐसा नहीं करते ? अवश्य करते हैं । आप में से अधिकांश व्यक्ति ऐसे होंगे जिनके पास आवश्यकता से अनेक गुना अधिक पैसा है, पर तब भी क्या कमाई करना छोड़ चुके हैं ? नहीं, वह तब तक करते रहेंगे जब तक आप से होता रहेगा। तो ऐसे जानने से क्या लाभ हुआ ? जानते हुए भी अगर व्यक्ति गड्ढे में गिरे तो क्या वह सच्चा जानकार कहला सकता है ? नहीं, उसकी जानकारी बाहरी है । सच्ची जानकारी आत्मिक होती है और जिसकी आत्मा इन बातों को समझ लेती है वह व्यक्ति जानकर फिर कभी गड्ढे में नहीं गिरता । धन-लिप्सा भी बड़ा गहरा गर्त है। अगर आप इस गर्त की गहराई को समझते हैं तो फिर इस लिप्सा का त्याग क्यों नहीं
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