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सब टुकुर-टुकुर हेरेंगे..
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विश्वास रखे तथा उसकी शुद्धि का प्रयास करता रहे तो अपने भविष्य को समुज्ज्वल बना सकता है।
अशरण भावना अब मैं आपको दूसरी भावना के विषय में बताने जा रहा हूँ। बारह भावनाओं में से दूसरी है-'अशरण-भावना' । इस भावना को हृदय में सतत भाते हुए मानव को विचार करना चाहिए कि इस जीव को संसार में कोई भी शरण देने में समर्थ नहीं है। पूज्यपाद श्री त्रिलोकऋषि जी महाराज ने इस विषय में फरमाया हैजन्म जरा रोग मृत्यु दुःखसुख दान एह,
वेदनी के वश जीव होवत हैरान है। माता-पिता भ्रात नारी पुत्र परिवार सब,
नहीं हैं सहाई गिने आतम समान है। जिन राज धर्म तोय तारण शरण गति,
एहि बिना कर्म करे अधिक तोफान है। ऐसे थे अनाथी ऋषि, भाई शुद्ध भावना ये,
कहत त्रिलोक भावे सो ही शिव स्थान है । बड़े सरल और सीधे-सादे शब्दों में कविश्री ने बताया है कि जीव जन्म, जरा, मृत्यु आदि अनेकानेक दुःखों को वेदनीय कर्म के कारण भोगता है तथा अत्यन्त हैरान बना रहता है। पर मेरा-मेरा कहने वाले माता-पिता, स्त्री, पुत्र या भाई आदि कोई भी उसे इन दुःखों से छुड़ाने में समर्थ नहीं होता।। __ क्योंकि, अगर ऐसा होता तो अनाथी मुनि के शरीर में उत्पन्न हुई भयानक व्याधि को उनके माता-पिता या अभिन्नता का प्रदर्शन करने वाली स्नेहमयी पत्नी मिटा देती । पर ऐसा नहीं हुआ क्योंकि होना संभव नहीं । वृहत् परिवार चारों ओर इकट्ठा होकर हाथ मलता रहा और अनाथी मुनि को अश्रुपूर्ण मेत्रों से देखता रह गया। एक कवि ने ठीक ही कहा है
कर करके उपचार न मैंने स्वजन बचा पाये हैं। गये पुराने स्वयं, स्वयं ही नये-नये आये हैं। कौन बचायेगा मुझको जब मृत्युदूत घेरेंगे । आस-पास हो खड़े स्वजन सब टुकुर-टुकुर हेरेंगे ।
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