________________
हंस का जीवित कारागार
२३३
करता है। किन्तु ज्ञान प्राप्त करने पर और समझ आने पर भी वह यह नहीं सोचता कि
रुधिर मांस चर्बी पुरीष की है थैली अलबेली, चमड़े की चादर ढकने को सब शरीर पर फैली, प्रवाहित होते हैं नव द्वार, हंस का जीवित कारागार ॥ निकल रहा है जिस भोजन से सौरभ का गुब्बार, किसकी संगति से षटरसमय स्वाद पूर्ण आहार, पलक में बन जाता नीहार, हंस का जीवित कारागार ।।
मनुष्य को सोचना चाहिए कि जिस शरीर को लेकर वह गर्व करता है, वह है कैसा ? रक्त, मांस, मज्जा एवं गंदगी से भरी हुई एक थैली ही तो है, जिस पर चमड़ा मढ़ा हुआ है और तब भी नौ द्वारों से मलिनता बाहर आती रहती है।
इतना ही नहीं, शरीर इतना घृणित है कि छहों रसों से परिपूर्ण, मधुर एवं स्वादिष्ट भोज्य-पदार्थ जो अत्यन्त सुगन्धित भी होते हैं, वे उदर में पहुँचते ही पलभर में आहार के अयोग्य एवं दुर्गन्धित बन जाते हैं।
वमन किया दूध क्यों नहीं पी सकते आपको ध्यान होगा कि भगवान नेमिनाथ जब विवाह के लिए तोरण पर आकर भी बाड़े में कैद असंख्य पशुओं की आर्त-पुकार सुनकर लौट गये थे, तब राजुल ने भी संसार से विरक्त होकर संयम ग्रहण करने की ठान ली थी।
किन्तु नेमिनाथ के भाई रथनेमि के मन में विकार आया और वह राजीमती के समीप जाकर बोला-"राजुल ! मेरे भाई चले गये तो क्या हुआ? उनके स्थान पर तुम मुझे समझ लो। मैं तुम्हें ग्रहण करता हूँ। यह आवश्यक नहीं है कि मेरे भाई के चले जाने पर संयम अपनाकर तुम अपने इस अतुल सौन्दर्य को मिट्टी में मिला दो। मैं तुम्हारे रूप पर अत्यन्त मोहित हूँ और चाहता हूँ कि तुम भी मेरे साथ जीवन का आनन्द उठाओ। आखिर यह सुन्दर शरीर तुम्हें किसलिए मिला है ? मेरे साथ भोगोपभोग करके इसका सच्चा लाभ उठाओ, मेरी तुमसे यही प्रार्थना है।"
बंधुओ, यद्यपि राजुल रथनेमि के भाई की वाग्दत्ता एवं होने वाली पत्नी होने के नाते भाभी थी और भाभी माता के समान पूजनीय होती है। किन्तु कामांध व्यक्ति को उचित-अनुचित का भान नहीं रहता। कहा भी है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org