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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
रहने पर भिखारी बनकर दर-दर घूमने को भी बाध्य हो सकते हैं । सारांश यही है कि इसमें कोई गुण नहीं है, जिसकी प्रशंसा की जाय । धन मनुष्य के जीते जी भी उसे धोखा दे देता है और मरने पर तो साथ, देने का सवाल ही नहीं है।" ___ सोलन की यह बात सुनकर कारू को भी बड़ा क्रोध आया कि- "मेरे जिस वैभव का सारा संसार लोहा मानता है और इसकी प्रशंसा करता है, उसी को सोलन निरर्थक, धोखा देने वाला और गुणहीन कह रहा है।" . अपने क्रोध के कारण कारू ने भी सोलन को अपमानित करते हुए राज्य से निकाल दिया और सोलन अपनी उसी प्रसन्नता, शान्ति और सन्तोष के साथ वहाँ से चला गया।
संयोग की बात थी कि फारस के बादशाह ने बगदाद पर आक्रमण किया और युद्ध में जीत गया। उसने कारू को बन्दी बनाकर जेल में डाल दिया। __जब कारूँ की ऐसी स्थिति हो गई तो उसका अपने धन पर रहने वाला गर्व चूर-चूर हो गया । उस समय उसे सत्यवादी सोलन की याद आई और अपने किये पर पश्चात्ताप करते हुए पागलों के समान–'सोलन ...! सोलन ......! कहकर उसे पुकारने लगा। ___ जेल के अधिकारियों ने जब फारस के बादशाह को यह बताया कि कारू बन्दीखाने में और किसी तरह की कोई बात न कहकर केवल-सोलन...... सोलन... ' कहकर किसी को पुकार रहा है तो बादशाह को आश्चर्य हुआ और उसने स्वयं आकर सोलन को पुकारने का कारण पूछा।
कारू ने बादशाह के पूछने पर पूर्वघटित सम्पूर्ण घटना कह सुनाई और कहा-"सोलन की बात सोलह आना सत्य थी। वास्तव में ही मेरा इतना विशाल खजाना मेरे काम नहीं आया और मेरे जीवित रहते ही धोखा दे गया। इसीलिए मैं सोलन से मिलकर उससे अपने व्यवहार के लिए क्षमा माँगना चाहता हूँ।"
फारस के बादशाह ने जब सारी बात सुनी तो वह भी सोचने लगा-"जब कारू का इतना विशाल खजाना उसके ही काम नहीं आया तो वह मेरे काम कैसे आ सकता है ? मेरी भी तो कल को कारू के समान ही स्थिति हो सकती है । वस्तुतः धन-वैभव, राज्य-पाट सब निरर्थक हैं, उनके द्वारा किसी का कोई लाभ नहीं हो सकता।"
यह विचार आने पर फारस के उस बादशाह ने कारूँ को छोड़ दिया और ससम्मान विदा किया।
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