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का वर्षा जब कृषि सुखानी
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अभी आपने सुना कि अगर समय पर बुद्ध न पहुँच पाते तो वह व्यक्ति संभवतः अन्न के अभाव में दम तोड़ देता और फिर भिक्षु कौन बनता ?
ऐसा ही कठिन वक्त आज हमारे समाज के अनेक असहाय प्राणियों के लिए भी है । अतः आज सबको संगठित होकर समय रहते ही उनकी सहायता करनी चाहिए अन्यथा फिर आपका धन किस काम आएगा? ____संस्कृत भाषा के एक विद्वान ने अन्योक्ति अलंकार का सहारा लेकर बादलों के बहाने आप जैसे धनिकों से कहा है
मुंच मुंच सलिलं दयानिधे,
नास्ति नास्ति समयो विलम्बने । अद्य चातक कुले मृते पुनर्वारि,
वारिधर ! किं करिष्यसि ? कवि ने बादलों को सम्बोधित करते हुए कहा है- “अरे दया के सागर बादल ! अपने अन्दर रहे हुए जल को छोड़ । यह समय विलम्ब करने का नहीं है, क्योंकि जल के अभाव में अगर आज चातक पक्षी का परिवार मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा तो फिर हे बादल, तू अपने पानी का और कौनसा सदुपयोग करेगा ?" __ वस्तुतः चातक नदी, तालाब या कुए का पानी नहीं पीता, वह केवल वर्षा की बूंदों को ही ग्रहण करता है। इसीलिए कवि ने कहा है कि-"अगर प्यास के मारे चातक आज अपने कुल सहित नष्ट हो जाएगा तो फिर बाद में तुम्हारा बरसाया हुआ जल किस काम का ?"
चातक के समान ही समाज के सदस्य भी होते हैं, आत्म-गौरव के कारण वे किसी के समक्ष हाथ नहीं फैलाते, किन्तु धनिकों का कर्तव्य है कि वे स्वयं हाथ ऊँचा करके जरूरतमंदों की बड़े प्रेम और भाईचारे के साथ सहायता करें। उन अभावग्रस्त व्यक्तियों को दाता बनकर नहीं, अपितु भाई बनकर अभावों से छुटकारा दिलाएँ । अन्यथा उनका धन आखिर फिर किस काम आएगा? आगे और भी कहा है--- वितर वारिद ! वारि दवातुरे,
चिर पिपासित चातकपोतके । प्रचलिते मरुतौ क्षणमन्यथा,
क्व च भवान् क्व पयः क्व च चातकः ॥
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