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का वर्षा जब कृषि सुखानी
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पद्य का अर्थ सरल और स्पष्ट है कि मिडास और सिकन्दर जैसे व्यक्ति इस प्रकार धन को इकट्ठा करने के प्रयत्न में लगे रहते हैं, मानो वे अमर हैं और अनन्तकाल तक अपने धन का उपभोग करते रहेंगे। किन्तु उनकी मूर्खता पर काल हँसता हुआ अचानक ही किसी दिन झपट्टा मारकर उन्हें पृथ्वी पर से उठा ले जाता है तथा नामो-निशान भी कहीं नहीं रहने देता।
इसीलिए मेरे भाइयो ! आपको समय रहते ही चेत जाना है तथा समय पर बरस कर चातक-कुल को तृप्त करने वाले बादलों के समान बनना है । समाज और देश के हितार्थ आपको अपने तन एवं धन, दोनों का ही सदुपयोग करते हुए धर्म का प्रचार व प्रसार करना है। इस अधिवेशन और संगठन का उद्देश्य यही है कि आप लोग संगठित होकर समाज के सदस्यों की बाह्य स्थिति सुधारें तथा उनके मानस को भी सुधार कर उज्ज्वल बनाएँ।
संगठन और धर्म संगठन की शक्ति अद्वितीय होती है और फिर उसमें धर्म भी रमा हुआ हो तो समाज और देश तो क्या संसार की भी कायापलट हो सकती है। आज जैनदर्शन और बौद्धदर्शन के सिद्धान्त हमारे देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी मान्य तथा यशःप्राप्त हैं। यह कैसे हुआ ? इसलिए कि धर्म के अनुयायी संगठित होकर अपने देश में और विदेशों में भी इसके प्रचार के लिए जाते रहे हैं। उस परिश्रम के फलस्वरूप ही इन दर्शनों का दूसरे देशवासियों ने आदर किया तथा इन्हें ग्राह्य मानकर ग्रहण किया।
संगठन के साथ धर्म को रमा देने के कारण ही हमारा देश वर्षों की विदेशी सत्ता को हटाने में समर्थ हआ था। महात्मा गाँधी ने जब देश को विदेशी सत्ता के चंगुल से मुक्त करने का विचार किया तो सर्वप्रथम इने-गिने व्यक्ति ही उनके साथ थे, किन्तु जब लोगों ने देखा कि गाँधीजी परम धर्म ‘अहिंसा' के महान शस्त्र से वर्षों की विदेशी शृखला को तोड़ने जा रहे हैं तो हजारों-लाखों व्यक्ति प्रभावित होकर उनके साथ हो लिये । सत्य एवं अहिंसा धर्म ने ही लोगों को आकर्षित किया और वे संगठित होकर इस ब्रह्मास्त्र के द्वारा विदेशी शासन से लोहा लेने के लिए तैयार हो गये।
प्राचीन काल से जहाँ व्यक्ति अपनी थोड़ी-सी जमीन अथवा छोटे से राज्य के लिए खून की नदियाँ बहा देते थे, वहाँ इतने बड़े भारत देश को भी हमारे देशवासियों ने संगठित होकर बिना रक्त बहाये अहिंसा धर्म के द्वारा संसार को चमत्कृत करके वर्षों की दासता से छुड़ा लिया।
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