________________
१२८
आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
___ इसलिए इन सब धोखा देने वाली सफाइयों को छोड़कर केवल अन्तर की सफाई का ध्यान रखो, यही कवि ने प्रेरणा दी है । साथ ही यह भी कहा है कि प्रमाद रूपी निद्रा में भी मत पड़े रहो और सजग रहकर इस क्षणिक किन्तु दुर्लभ जीवन का लाभ उठाने के लिए आत्म साधना करो । ऐसा करने पर ही अपने मुक्ति जैसे उच्चतम लक्ष्य की प्राप्ति कर सकोगे । अन्यथा लोगों को भुलावे में डाल कर इस लोक में झूठे यश और सुख की प्राप्ति कर भी लोगे तो क्या हुआ ? आखिर तो परलोक में जाना पड़ेगा और वहाँ फिर तुम्हारी बातों की या हाथों की सफाई क्या काम आएगी ? ___तो बंधुओ, प्रसंगवश एक कविता के आधार पर कुछ आत्मोन्नति की बातें आपके सामने रखी हैं । अब कल बताया जाएगा कि राजा प्रदेशी और केशी श्रमण में आगे किस प्रकार का प्रश्नोत्तर होगा ? ओम् शांति ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org