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सच्ची गवाही किसकी ? १३१
आवश्यकता है ? यही न, कि जिन लोगों ने अपनी आँखों से घटनास्थल पर हुई घटना को देखा है उसकी साक्षी ये गवाह देते हैं । न्यायाधीश किसी हत्यारे को हत्या करते हुए नहीं देखता, किन्तु बाजार, सड़क या घर में जहाँ हत्या हुई हो वहाँ मौजूद रहने वाला व्यक्ति अगर साक्षी देता है कि मैंने इस व्यक्ति को अमुक की हत्या करते देखा है तो विश्वास होने पर मजिस्ट्रेट या न्यायाधीश हत्यारे को सजा दे देता है । वह यह नहीं कहता कि मैंने इसे हत्या करते स्वयं नहीं देखा तो हत्या इसने की ही नहीं या हत्या हुई ही नहीं ।
तो बन्धुओ ! गम्भीरतापूर्वक विचार करने की बात है कि आप लोग और न्यायाधीश आदि सभी व्यक्ति इन व्यक्तियों की गवाही या इनके कथन को तो सत्य मान लेते हैं जो मन में ईर्ष्या होने के कारण या शत्रुता होने के कारण और इनसे भी बढ़कर कुछ रुपयों की प्राप्ति के लोभ के कारण झूठी गवाही भी दे देते हैं, पर जो वीतराग एवं अनन्तज्ञान के धारक कह गये हैं उनकी बातों को सत्य मानना नहीं चाहते । आश्चर्य की बात है कि तुच्छ स्वार्थ के लिए जो धर्म की, धर्म-ग्रन्थों की और भगवान तक की सौगन्ध खा जाते हैं, उनकी बात को तो लोग झूठी होने पर भी सत्य समझते हैं किन्तु जिन केवलज्ञान के धारी और सम्पूर्ण राग, द्वेष, लोभ एवं स्वार्थ से रहित तथा संसार के प्रत्येक प्राणी का हित चाहने वाले वीतराग प्रभु की पाप-पुण्य, लोक-परलोक एवं आत्मापरमात्मा आदि के लिए दी गई साक्षी या गवाही है उसे असत्य अथवा काल्पनिक मानते हैं । ऐसा क्यों ? इसीलिए कि हमारे ज्ञान चक्षुओं पर अज्ञान के परदे पड़े हैं तथा विवेक पर मिथ्यात्व का आवरण चढ़ा हुआ है । हमारी आत्माएँ अभी अशुभ कर्मों से जकड़ी हुई हैं और उनका संसार - परिभ्रमण बहुत की है ।
जिनका संसार कम होता है वे तो घोर पाप में डूबे हुए और महापातकी होने पर भी उद्बोधन पाते ही चेत जाते हैं, सजग हो जाते हैं और अविलम्ब कर्मों का क्षय करने में जुट जाते हैं । अंगुलिमाल एवं अर्जुनमाली जैसे हत्यारे भी थोड़ी-सी सत्संगति से बदल गये और जी-जान से संसार-मुक्ति के प्रयत्न में जुट गये । किन्तु आप लोग जीवन भर बड़े-बड़े सन्तों के उपदेश सुन लेते हैं पर आध्यात्मिक उन्नति के दृष्टिकोण से वहीं खड़े रहते हैं, जहाँ बरसों पहले थे । ऊपर से कहते हैं परलोक कहाँ है ? किसने देखा है ? और देखा है तो कभी आकर बताया क्यों नहीं ?
अरे भाई ! तीर्थंकर महापुरुष जो कह गये हैं वह आपके लिए बताना नहीं तो और क्या है ? वे तो सर्वज्ञ और सर्वदर्शी थे, पर उनकी बातों को भी आप
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