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अपराधी को अल्पकाल के लिए भी छुटकारा नहीं होता
धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो !
हमारे प्रवचनों का मूल विषय तो संवर के सत्तावन भेदों में से इकत्तीसवाँ भेद 'दर्शन परिषह' चल रहा है और उसे लेकर भगवान ने फरमाया है कि भिक्षु यह चिन्तन कभी न करे कि-'परलोक नहीं है।'
भगवान की यह बात केवल भिक्षु या साधु के लिए ही नहीं है; अपितु श्रावकों के लिए भी है । क्योंकि श्रावकों का और साधुओं का जीवन-लक्ष्य एक ही है और वह है-आस्रव का त्याग करके संवर की आराधना करते हुए कर्मों की निर्जरा कर मुक्ति हासिल करना । भले ही साधु अगर सम्यक् प्रकार से संयम का पालन करे तो कुछ तीव्र गति से मुक्ति-पथ पर बढ़ सकता है और श्रावक पूर्णतया व्रतों का पालन न कर पाने के कारण धीमी गति से चले, पर दोनों का मार्ग एक ही है। हमारा इतिहास तो ऐसे कई उदाहरण भी बताता है, जिनसे मालूम होता है कि अनेक श्रावक बिना संयम ग्रहण करके भी केवल ज्ञान की प्राप्ति कर चुके थे। ___इसलिए परलोक नहीं है, ऐसा चिन्तन न साधु को करना चाहिए और न श्रावक को। क्योंकि जो भी व्यक्ति ऐसा विचार करेगा, वह पाप से कभी नहीं डरेगा तथा अपने जीवन को दुर्गुणों से युक्त बनाकर पापों का संचय कर लेगा तथा परलोक में दुःखी बनेगा।
कल मैंने आपको बताया था कि राजा प्रदेशी पूर्णतया नास्तिक था। वह न परलोक को मानता था और न ही आत्मा का कोई अस्तित्व शरीर से भिन्न समझता था । उलटे, लोगों के मुंह से यह सुनकर कि आत्मा शरीर से भिन्न है
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