________________
अपराधी को अल्पकाल के लिए भी छुटकारा नहीं होता १२१
की, महानता की तथा कुलीनता और अकुलीनता की परीक्षा होती है । एक श्लोक में कहा गया है—
न जारजातस्य ललाट गम्,
कुल प्रसूते न च पाणिपद्मम् ।
यदा यदा मुञ्चति वाक्यबाणं,
तदा तदा तस्य कुलप्रमाणम् ॥
अर्थात् — जो अकुलीन व्यक्ति होता है उसके सिर पर सींग नहीं होते और उच्चकुलीन के हाथ में कमल पुष्प नहीं रहते । यानी उत्तम और अधम कुल के व्यक्तियों की आकृति में तो तनिक भी अन्तर नहीं होता; किन्तु जब वे बोलते हैं तब पता चल जाता है कि इनमें से कौन उच्च कुल में जन्म लेने वाला संस्कारशील व्यक्ति है और कौन निम्न कुल में उत्पन्न होने वाला मूर्ख ।
इस पहचान के अलावा और भी जो सबसे बड़ी बात है, वह यह है कि मधुर बोलने वाले के सभी मित्र एवं हितैषी बन जाते हैं तथा कटु-भाषी निरर्थक ही अनेकों को अपना शत्रु बना लेता है ।
उर्दू के एक कवि ने भी यही कहा है
गैर अपने होंगे शीरीं हो गर अपनी जवां । दोस्त हो जाते हैं दुश्मन, तलख हो जिसकी जवां ॥
तो बंधुओ, इसीलिये कवि कटु-भाषी व्यक्ति की भर्त्सना करते हुए कहता है कि-- “ तूने जीवन में अब तक न जाने कितनी चीनी और मिठाइयाँ अपनी जबान पर रखकर उदर में पहुँचाई है, पर फिर भी इसमें मिठास न लाकर दुःखदायी एवं जहरीले शब्दों का प्रयोग क्यों करता है ?"
Jain Education International
अच्छी और बुरी भी
कहते हैं कि हकीम लुकमान बड़ा विद्वान एवं आध्यात्मिक प्रवृत्ति का पुरुष था । एक बार वह एक राजा का इलाज कर रहा था। राजा स्वयं भी बड़ा सरल था । अतः वह लुकमान से दवा पी लेता था और कभी-कभी आध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप भी किया करता था ।
एक दिन राजा ने लुकमान से कौतूहलवश पूछ लिया- " हकीम जी ! हमारे शरीर में सबसे बुरा और सबसे अच्छा अंग कौन-सा है ?"
लुकमान ने छूटते ही उत्तर दिया - " जिह्वा ।"
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org