________________
अपराधी को अल्पकाल के लिए भी छुटकारा नहीं होता
अहे वयइ कोहेणं, माणेणं अहमा गई । माया गई डिग्घाओ, लोभाओ दुहओ भयं ॥
अर्थात् — क्रोध से आत्मा नीचे गिरती है । मान से अधम गति को प्राप्त करती है । माया से सद्गति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है और लोभ से तो इहलोक और परलोक दोनों में ही कष्टों का भय पैदा हो जाता है ।
१२३
- अध्ययन है, गाथा ५४
इसीलिये कवि ने कहा है कि मनों दूध और दही को ग्रहण करके भी तेरे मन में उनकी उज्ज्वलता क्यों नहीं आई ? अर्थात् मन कषायों से काला ही क्यों बना रह गया, उसमें वैराग्य एवं आध्यात्मिकता की पवित्रता और शुभ्रता क्यों नहीं आई ? और इस काले हृदय को लेकर भला तू कैसे अपनी आत्मा का भला कर सकेगा या औरों का भी कुछ उपकार करने योग्य बनेगा ? आगे कहा है
तू ने घी भी काफी खाया, लेकिन दिल चिकना न बनाया, कर-कर हिंसा पाप कमाया, अब फिर रो रहा है क्यों ?
हमारे धर्म में अहिंसा का महत्त्व अन्य सभी धर्म- क्रियाओं से सर्वोपरि बताया गया है । आप लोग सदा नारे भी लगाते हैं - 'अहिंसा परमो धर्मः ।' लेकिन कितने व्यक्ति अहिंसा को जीवन में उतारते हैं तथा उसका पालन करते हैं ? बहुत कम ।
कवि ने इसीलिये मानव से कहा है – “ तूने जीवन भर घी खाया है जो कि अति स्वादिष्ट और चिकना होता है । किन्तु उसे खाकर भी तेरा दिल चिकना यानी नरम क्यों नहीं हो पाया ?" हम जानते हैं कि शरीर की ऊपरी त्वचा अगर रूखी हो तो उसे नरम करने के लिये हथेलियों में थोड़ा सा घी लेकर चमड़ी पर मल देते हैं और उससे चमड़ी बहुत नरम हो जाती है । पर उदर में मनों घी खा डालने पर भी हृदय रूखा क्यों रह जाता है ?
Jain Education International
रूखे और हिंसक स्वभाव वाले व्यक्ति के दिल में अन्य प्राणियों के प्रति तनिक भी दया, करुणा या ममता की भावना नहीं रहती । परिणाम यह होता है कि वह शरीर से हिंसा करता है, उससे अगर बच जाता है तो वचन से कटु शब्दों का प्रयोग करके औरों का हृदय तोड़ता है तथा उसका मौका न आए तो मन से ही अन्य व्यक्तियों का अशुभ चिंतन करता हुआ हिंसा का भागी बनता है ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org