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८६ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग गई । शबरी विचार करने लगी- "सभी ऋषियों और मुनियों ने भगवान के स्वागत की अनेक प्रकार से तैयारियां की हैं, पर मैं क्या करूँ ?" उसका कार्य तो जंगल के बेरों को तोड़कर लाना और उन्हें बेचना ही था । अतः उसने उन्हीं से राम का स्वागत करने का निश्चय किया।
सर्वप्रथम तो अपनी झोंपड़ी के आसपास की सारी जगह उसने झाड़-बुहार कर स्वच्छ की, उस पर जल छिड़का और फिर फटी-टूटी बोरियाँ राम के लिए बिछाकर बेरों की टोकरी भर लाई ।
ऋषियों ने भी उसके कार्य-कलाप को देखा । पर उपहास करते हुए आपस में बोले- "इस मूर्ख शबरी को तो देखो ! यह तो ऐसी तैयारी कर रही है, जैसे हमारे सभी सुन्दर आश्रमों को छोड़कर राम इसी के यहाँ आकर इन फटीपुरानी बोरियों पर बैठेंगे तथा ब्राह्मण महर्षियों को छोड़कर इस भीलनी का आतिथ्य ग्रहण करेंगे।"
शबरी सबकी बातों को सुन रही थी, किन्तु उसे किसी की परवाह नहीं थी। अचानक उसे खयाल आया कि-'मेरे राम इन बेरों को खाएँगे तो सही, पर अगर कोई खट्टा बेर उनके मुँह में चला गया तो?' यह विचार आते ही उसने बेर चखना शुरू कर दिया और एक टोकरी में चखे हुए मीठे-मीठे बेर
और दूसरी में खट्टे बेरों को डालना शुरू किया। यह देखकर तो वहाँ के निवासी उसे पागल समझकर और भी हँसने लगे।
इतने में ही शोर मच गया कि "भगवान राम पधार गये ।" आश्रमों में स्थित सभी ऋषि-मुनि उनके स्वागत के लिए दौड़ पड़े। शबरी भी राम का आगमन सुनकर भागी और संत-महात्माओं के पीछे जाकर संकुचित होती हुई एक ओर खड़ी हो गई । भाव-विह्वलता के कारण उसके नेत्रों से आनन्दाश्रु बह चले और वह उन्हें प्रणाम करना भी भूल गई, जबकि बाकी सब दंडवत् नमस्कार कर रहे थे।
राम ने सभी को देखा पर धीरे-धीरे शबरी के साथ हो लिये । सजग होकर शबरी अपार हर्षसहित उन्हें अपनी झोंपड़ी में लिवा गई और बैठने के लिए बोरियाँ बिछाईं । राम-लक्ष्मण के चरण जल की अपेक्षा आनन्दाश्रुओं से अधिक धोये और बेर की टोकरी सामने रखकर कुछ चखे हुए और साथ ही कुछ चखकर मीठे-मीठे छाँटते हुए उन्हें देने लगी । शबरी चख-चख कर जूठे पर मीठे बेर खिला रही थी और राम प्रसन्नतापूर्वक उन्हें खाते जा रहे थे।
पर लक्ष्मण ने जब यह देखा तो वे मन ही मन दाँत पीसने लगे। उनकी क्रोधाग्नि भड़क उठी और कह उठे-"भैया ! यह आप क्या कर रहे हैं ?
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