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आध्यात्मिक दशहरा मनाओ ! ७६ यह शरीर को क्षणिक और झूठा सुख प्रदान करता है तथा आत्मा को पतन की ओर लेजाकर कर्म-बन्धनों में जकड़ देता है । किसी ने विषय-विकार की बुराई करते हुए कहा भी है
यह रस ऐसो है बुरो, मन को देत बिगार।
या के पास न जात है, है जो ठीक होश्यार ॥ विषय-विकारों के लिए कहा गया है कि इनकी प्रबलता मन को पापपूर्ण एवं कलुषित बना देती है । अत: विवेकी और समझदार व्यक्ति इनके समीप भी नहीं फटकता । लोगों का विश्वास होता है कि इन विकारों पर विजय प्राप्त करना असंभव है । पर उन्हें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि विकार भले ही कितने भी प्रबल और शक्तिशाली हों, आत्मा की शक्ति से बढ़कर इनकी शक्ति नहीं है । आत्मा में अनन्त शक्ति है और इसे काम में लाने पर व्यक्ति पूर्णरूप से इनका दमन कर सकता है । आवश्यकता है मन की नकेल अपने हाथों में रखने की। यद्यपि रावग स्वयं विकारों पर काबू नहीं रख सका इसलिए उसका सर्वस्व तो क्या वंश भी निर्मूल हो गया, किन्तु भव्य महामुनि ऐसे भी हुए हैं जो वेश्या के यहाँ चातुर्मास करके भी मन को उसके सौन्दर्य, नृत्य, संगीत या भोग-विलास के समस्त साधनों से युक्त भवन से भी सर्वथा निर्लिप्त रहते हुए पूर्ण आत्मिक शुद्धता सहित बेदाग लौट आये हैं। उनके शरीर तो क्या, वचन
और मन को भी विकार स्पर्श नहीं कर पाया। अनेक उदाहरण ऐसे रहे हैं, जिनसे साबित होता है कि भले ही दुर्बल मन वाले अपने मन और इन्द्रियों पर काबू न रखने के कारण पतित हो जाते हैं, किन्तु जिनकी श्रद्धा मजबूत होती है और आत्मा पाप-पुण्य के अन्तर को समझती हुई इनके परिणामों पर सही विचार करती है । वे सांसारिक विषयों के कितने ही उग्र एवं प्रबल होने पर भी विचलित नहीं होते।
द्वितीय पुत्र-मेघवाहन तो मिथ्यामोहरूपी रावण का पहला पुत्र था विषय-वासनारूपी इन्द्रजीत जिसे रावण अत्यन्त स्नेह करता था और इसी ने परस्त्री हरण करवाकर उसका सर्वनाश किया। अब उसके दूसरे पुत्र के विषय में बताना है । वह था अभिमानरूपी मेघवाहन । इस पुत्र ने भी रावण को महान् कष्ट दिया तथा जन्म-जन्मान्तर तक के लिए संसार-सागर के कर्मजल में गोते लगाने का साधन जुटाया । इसके अलावा इतने कुयश का उपार्जन किया कि युगों से लोग उस पर थूकते चले आ रहे हैं और ऐसा ही युगों तक करते रहेंगे । आज दशहरे के दिन रावण का पुतला बनाकर लोग उसके अभिमान की ही याद करते हैं, उसकी निन्दा करते
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