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आध्यात्मिक दशहरा मनाओ !
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो !
आज विजयादशमी है । इस नाम का कारण यह है कि आज के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र जी ने महाबली रावण को मारकर उस पर विजय प्राप्त की थी । इस दिन का भारत में बड़ा भारी महत्त्व माना जाता है तथा देश के कोने-कोने में आज का यानी दशहरे का दिन रावण के पुतले को जलाकर बड़े घूम-धाम से मनाया जाता है । लोग रावण का विशालकाय पुतला बनाते हैं तथा नकली राम और लक्ष्मण बनाकर उनके द्वारा रावण के पुतले को नष्ट करते हैं और साबित करते हैं कि इसी प्रकार दीर्घकाल पूर्व भी राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी ।
आज के दिन को दशहरा और विजयादशमी दोनों नामों से पुकारा जाता है । अर्थ भी दोनों नामों का एकसा ही ध्वनित होता है। दशहरा नामकरण यह बताता है कि इस दिन दस मस्तकों वाले रावण को मारा गया था और विजयादशमी भी यही कहती है कि उस रावण पर विजय प्राप्त की गई थी ।
वैसे विजयादशमी का अगर हम आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टि से अर्थ करें तो यह महसूस होता है कि आज के दिन धर्म ने अधर्म पर, न्याय ने अन्याय पर, शील ने कुशील पर एवं स्वाभिमान ने अभिमान पर विजय पाई थी । ध्यान रखने की बात यही है कि दशहरा मनाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आज का दिन केवल यही मानकर नहीं मनाना चाहिए कि इस दिन एक व्यक्ति ने दूसरे को मारा था और जीत हासिल की थी, अपितु यह विचार कर मनाना चाहिए कि इस दिन पुण्य ने पाप पर विजय पाई थी ।
इस विषय पर परमज्ञानी और आगमों के मर्म तक पहुंच जाने वाले पूज्यपाद श्री त्रिलोक ऋषि जी ने अहमदनगर के समीप वाम्बोरी क्षेत्र में जब
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