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जैसे अनावश्यक पदार्थ मनुष्य के मन की शान्ति को भंग करते हैं, वैसे निरुपयोगी एवं निम्न स्तर के विचार भी उसकी शान्ति का अपहरण करते हैं। उसके जीवन में विकारों को जन्म देते हैं। अतः साधक को अपने दिमाग को सदा स्वस्थ रखना चाहिए। उसे व्यर्थ के कलह-कदाग्रहों एवं वासनामय विचारों के कूड़े-करकट से नहीं भरना चाहिए। क्योंकि आवश्यक पदार्थ एवं स्वस्थ, सभ्य और ऊँचे विचार ही मनुष्य की सम्पत्ति
है।