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अज्ञानतिमिरनास्कर. गोंने एक और युक्ति आजीविकाकी निकाली सो यह है. तीर्थोका माहा नदी, गाम, तलाव, पर्वत, नूमि इत्यादिक जो वे. त्म्य सो टंकशाल है." दोंमें नहीं है तिनके माहात्म्य लिखने लगे, तिनको कथा जैसी जैसी पुरानी होती गई तैसी तैसी प्रमाणिक होती गई. और फलनी देने लगी. इसी तरें काशी, प्रयाग, गया, गोदावरी, पुष्कर, जगन्नाथ, श्रीनाथ इत्यादिक हजारों माहात्म्य लिखे, यह टंकशाल अवनी जारी है. पंझरी माहात्म्यकों बनायें लिखें साठ ६० वर्ष हुयेहै;माकोरकेमाहात्म्य लिखेको १४चौदह वर्ष हुयेहैं, पावकाचल पावागढका माहात्म्य, सिहपुरका माहात्म्य दोनों थोमेही वर्षोसें लिखे गयेहै. इसी तरें जाति जातिका माहात्म्य लिखाहै, जैसे नागरखंड, औदिच्य प्रकाश, रैवपुराण इत्यादि हजारों माहात्म्य प्रसिह है. इन ग्रंथोंके लिखनेवालोंने बहुत धूर्तता करी है सो धूर्तता यह है; अब कलियुग आय गया है, लोगोंकी श्रधा ब्राह्मगोंके लेख उपरसें न जायगी. इस बारते लोगोंकों गाफल न रहना चाहिये और अक्षा न गेडनी चाहिये. लोगोंगे तो नरकमें जावोंगे. कलि बुद्धि बिगाडता है. इत्यादि बहुत धमकीयां पत्रेप
में लिखी है. इसी तरें कितनेक भास, तिथि, योग, बार इत्यादिकोंके माहात्म्य लिखे है. तिनको व्रत पर्वशी कहते है. व्यतिपात, सोमवार, पुरुषोत्तममास, कपिलषष्ठी, महोदय करवाचौथ संकटादिके माहात्म्य लिखे. जैसे जैसे पुराणे होते जाते है तैसें तैसें अधिक मानने योग्य होते जाते है. करोनों लाखों रुपए खरचके लोग काशी यात्रा करते है, पर्वणी और व्रत नपर दान पुण्य करते है, तिस्से माहात्म्य लिखनेवालोंका प्रयत्न करा व्यर्थ नहीं हुआ. जबतक लोगोंको अज्ञान दशाहै तबतक इस ब्रम जालसें कबी नहीं निकलेंगे.
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