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द्वितीयखम. गानेवाला, जपमाला जपनेवाला, शस्त्र राखनेवाला, बैल प्रमु खकी स्वारी करनेवाला, बेटी आदिकसे विषय सेवनेवाला, वृकके फल खाने जावे, जब वृक्ष में फल न मिले तब शाप देके वृक्षको सुका देनेवाला, अज्ञानी, मांसाहारी, मद्य पीनेवाला इत्यादि अवगुणवालाको उपर जो ईश्वर पदका आरोप करा है. सो करने वालेकी महा मूढताका सूचक है ऐसे अयोग्य पुरुषांको बुद्धिमान् कदापि ईश्वर न कहेगा. ईश्वर तो पूर्वोक्त दूषणोंसें रहित होता है. तिसकोही जैनमतमें अरिहंत कहते है..
सिह पदका स्वरूप लिखते है. यद्यपि सिह अनेक प्रकारके है नाम सिह १ स्थापना ति६ २. य सिह ३. शरीरव्य ति६४ नव्य शरीर व्य ति ५ यात्राति ६ विद्या लिइ ७ मंत्रसिह ७ बुदिति ए शियासह २० ताति६ ११ ज्ञानति १२ कर्मक्षयसिह १३ इत्यादि अनेक सिह है, परंतु हा कर्मक्षय तिःशंका अधिकार है जे सर्व अष्ट कर्नकी नमाधि कय करके सिन्हुन है वे कर्मक्षय सिह कहे जाते है. कितनेक सिवको आदिनी नहि और अंतनी नहि है. कितनेक प्तिांको आदितो है परंतु अंत नदि है. सिह जो है वे अज, अमर, अलख, निराकार, निरंजन सि ६, बुझ, मुक्त, पारगत, परंपरागत, अयोनि, अरूपी, अद्य, अनेद्य, अदा, अक्लेद्य, अशोष्य, कूटस्थ, परब्रह्म, परमा. त्मा शिव, अचल, अरुज, अनंगी, शुभ चैतन्य, अक्षय, अव्य य, अमल इत्यादि नामांसें कहे जाते है. ये सिई पुनः संसारमें जन्म नहि लेते है. जैसै बीज अत्यंत दग्ध हो जाये तो फिर अंकुर नहि देता है ऐसेही कर्म बीज शुक्लध्यानरूप अग्नि करके दग्ध हुए फिर संसारमें जन्मरूप अंकुर नदि कर शकता हैनोले जीव जो शास्त्रमें लिख गये है और अब कहे रहे है, ई
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