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द्वितीयखमः एक रूप है तो पिता शूलि नहि चढा इत्यादि अनेक तकों मेरी बुझिमें प्रकट होते है. सर्व लिख नदि शकता हुँ. तो क्या ई. श्वर कृपालु, दयानिधि मेरा संशय दूर नहि कर शकता है. अ. फसोस करता हूँ के नोले जीवोंने नोलेपनेसं परम पचित्र ईश्वरको कितना कलंकित करा है. मेरी लेखनमें लिखनेकी शक्ति नदि है, नोले जीव इस जगतको देखके इसी विचारमें डूब गये है कि ऐसी विचित्र रचना ईश्वर विना केसी हो शक्ति है, परंतु यह विचार नहि करते है कि ऐसा सामर्थ्य अनंत शक्तियो करी संयुक्त ईश्वर अपने आप नत्पन्न कैसे हो गया. नोला कहता है, ईश्वर तो अनादिसें ऐसाही है तो फिर हे नोले जीव! तुं इस जगतकोनी इसी तरें अनादि माने तो ईश्वर परमात्माके सर्व आरोपित कलंक दूर हो जावे. क्योकि यह संसार च्यार्थिक नयके मतमें अनादि अनंत है और पर्यायार्थिक नयके मतमें आदि अंतवाला है और इसका कर्ता नदि है. शक्ति है, परंतु सिंह परमात्मा किसी वस्तुका कर्ता नदि है. अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतसुख, अनंत सम्यग् दर्शन चारित्र, अनंत स्थिति, अरूपी, अगुरु लघु, सर्व विघ्न रहित सिह नगवंत है. तथा शु६ च्यार्थिक नयके मतमें सिह परमात्मा परब्रह्म एकही माना जाता है. तथा अन्य नयके मतमें सिह अनंतेनी माने जाते है. सर्व सिह लोकाग्र आकाशमें स्थित है. व्यरूप करके सर्व व्यापी नहि है, आदित्यवत्; ज्ञान शक्ति करके सर्व व्यापी है, आदित्य प्रकाशवत्. सिझांके सुखको को उपमान नहि है. इन सर्व सिहकोही लोकोने अल्ला, खुदा, ईश्वर, परमे. श्वर, परब्रह्म आदि नामो करके माना है, प्रथम पद अरिहंतको अवतार, अंशावतार, तीर्थकर, बुझ, धर्मोपदेष्टा, धर्मसारथि, धर्म सार्थवाद, धर्मका नियामक, गोपाल, धर्मका रक्षक, जगत् प्रका
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