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अज्ञानतिमिरनास्कर. अणण्हयफले, एवं अणण्हयफले, तवे तवे वोदाणफले, वोदाणे अकिरियाफले, साणभंते अकिरिया किंफला सि ढिपज्जुवसणफला पन्नता गोंयमा गाहा ॥ सवणे १ ना. णेय २ विन्नाणे ३ पच्चखाणे ४ संजमे ५ अणण्हय ६ तवे ७ चेववोदाणे ८ अकिरिया ॥१॥
इस सूत्रकी वृत्तिकी नाषा-तथारूप नचित स्वन्नाववाले किसी पुरुषकी श्रमणं वा तपयुक्तकी उपलकणसें उत्तरगुणवंतकी माहनं वा आप हननेंसें निवृत्त होनेसें परको कहता है, मादन अर्थात् मत हन, नपलक्षणसें मूलगुण युक्तकी वा शब्द दोनो समुच्चयार्थमें है अथवा श्रमण साधु, मादन श्रावक इनकी सेवा करे तो क्या फल है. सितके सुननेका फल होता है सुननेका फल श्रुतज्ञान है, सुननेसेंही श्रुतझान पामीये है, श्रुतका फल विशिष्ट ज्ञान है, श्रुतझानसेंही हेयोपादेयके विवेक करणेवाला विज्ञान उत्पन्न होता है, विशिष्ट ज्ञानसें प्रत्याख्यान निवृत्ति फल रूप होता है, विशिष्ट ज्ञानवालाही पापका प्रत्याख्यान करता है, प्रत्याख्यानका फल संयम है, प्रत्याख्यानवालेहीके संयम होता है, संयमका फल अनाश्रव है, संयमवाला नवीन कर्म ग्रहण नहि करता है. अनावका फल तप है, अनाववाला लघुकर्म होनेसें तप करता है. तपका फल व्यवदान अथात् कर्मकी निर्जरा है तप करके पुरातन कर्म निर्जर जाते है, व्यवदानका फल अक्रिय योग निरोध फल है निर्जरासे योग निरोध करता है, अक्रियका फल सिदि लक्षण पर्यवसान फल है, सकल फलोंके पर्यंत वर्ति फल होता है, इस वास्ते साधु श्रावक दोनांको उपदेश देनेका अधिकार है.
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