________________
हितीयखमः । नने लगे. मेवामके शाहपुरमे रामस्नेही पंथ चलाया. निःकेवल सर्व दीन राम-राम-राम रटते है. नियानीके पास मेडराज और नानकीने एक मश्कर पंय निकाला है, तिसकोनी कितनेक मानते है. पंजाबने नारामसिंह सुतारने कुकापंथ चलाया है, तिसको हजारो लोक मानते है. गुरु गोविंदसिंहने निर्मला पंथ काढा, अब वेदांत मानते है. चल, कटे, रोदे, गुलाबदासी - त्यादि गेटे गेटे अनेक पंय निकले है सर्व पंथवाले अपनी अपनी खीचमी न्यार। न्यारी पकाते है. एक उसरे मतको जूग कहता है, आप सच्चा बनता है. नधर युरोपीअन लोकोने हिंदुस्थानमे साहीके मतका नपदेश करणा शुरु किया है. उपदेशसे, धनसें, स्त्री देनेसे लोकोको अपने मतमे वेष्टिझम् देके मिलाते है नधर बंगालेमे रायमोहन, केशवचं, नवीनचं, विगेरे बाबुओने ब्रह्मसमाज मत खमा करा है. तिसका कहीं ऐसा है कि ईश्वरका कहा पुस्तक जगतमें कोईनी नहि है. लोकोने अपनी अपनी बुदिसें पुस्तक बनाके ईश्वरके नामसे प्रसिध्द करे है, पुरुषकों नेक काम करना चाहिये, परनव है वा नहि, नरक स्वर्ग कोन जाने है कि नहि. इत्यादि मतोंसे आर्य लोकोंकी बहुत दुर्दशा हो रही है तोनी इतने में दयानंद सरस्वतिकोनी नवीन मत चलानेकी हिरस नत्पन्न नइ. तब अपनी अक्कलसें खुब विचारा और शौचा होवेगा कि जेकर ब्राह्मण, सन्यासी, वैष्णव वगैरों के पुस्तकानुसार उपदेश करूंगा तो प्रतिवादीयोको उत्तर देना कठिन पमेगा, और ब्रह्मा, शिव, विष्णु ये देव ठीक नहि और पुस्तकन्नी सन्यासी ब्राह्मणोंने बहुत जूठे रच दिये है, तिनके माननेसे आदमीका बहुत फजिता होता है, प्रतिवादीनौको उत्तर देनानी मुश्कील है, इस वास्ते वेदकी संहिता ईश्वरकी कथन करी दुर है, एक ईशावास्यक उपनिषद् गे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org