Book Title: Agnantimirbhaskar
Author(s): Vijayanandsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 362
________________ इट अज्ञानतिमिरजास्कर. I " संपत्ते जिस्क कालंमि श्रसंजतो अमुच्चिन । इमेख कम्म जाए, जत्त पासंग वेसइ ॥ १ ॥ " इत्यादि. तथा कितनेक उद्यम सूत्र है. यथा उत्तराध्ययन दशमे अध्ययने,. 6.6. तुम पत्तए पंडुय यज्हा निवडे इराय गलाण अचए, एवं मणुयाण जिवियं समयं गोयम मापमाय ॥ १ ॥ इत्यादि.. तथा कितनेक वर्णक सूत्र है. ज्ञाता, नववा प्रमुख में.. ' रिद्धि च्वमिय समिक्षा. ' इत्यादि तथा कितनेक जय सूत्र है. जैसें नरकमें मांस रुधिरका कथन करना नक्तंच 66 नरए मंत्र रुहिराइ वन्नणं पसिद्धि मित्तेला जय देन: इह रहतेसिं वे व्विय जाव ननतयं ” इत्यादि. उत्सर्ग सूत्राणि यथा.. " इच्चे सिं बएदं जीव निकायाणं नेवसयं दंडे समारंजिया "" इत्यादि षट्जीवनिकायके रक्षाके प्रतिपादक विधायक है. अपवाद सूत्रतो प्रायवेद ग्रंथोसें जाने जाते है. तथा "नयाल निशा निनां सहायं, गुलादियं वा गुण नस्समं-वा | इक्कोवि पावाइ विवद्ययंतो, विहरिय कामे सुय समालो || १ ॥ इत्यादि ज्ञावार्थ जब निपुण सहायक गुणाधिक अग्रवा बराबर गुणवाला न मिले तब पपांको वर्जता हुआ और काम में अनाशक्त होकर एकलाजी विचरे तथा तदुजय सूत्र जिनमें उत्सर्गापवाद दोनो युगपत् कहे जाते है. यथा , 783 D. Jain Education International " श्रझाणां नावे समं श्रहियासि यव्व वादी " तझावं मिन fafe परिवार पवचणं नेयं ॥ इत्यादि नावार्थ. जीस रोगव्याधिके हुए आर्त्तध्यान न दावे तवतो सहनी जेकर था - ध्यान तिस रोगव्याधिके दुवे तब तिसके उपचार में वर्त्तना. श्र बधी करणी. ऐसे नाना प्रकारके स्वसमय परसमय, निश्वय व्यव.. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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