Book Title: Agnantimirbhaskar
Author(s): Vijayanandsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 397
________________ द्वितीयखं. ३३३ नावार्थ-श्री महावीरस्वामीका सुंदर शासन प्रो संसाररूप समुश्में नवनीतकुं झांझ समान है. और अनंत सुखका सर्व स्वनिधानका बीज तथा सर्व प्राणीका सुखने वास्ते कल्पखुद समान है. प्रश्रमपदका अधिपति श्री सुधर्मास्वामीकुं हर्षसे प्रणाम कर तपगच्छकी किंचित् सूचना लिखते है. सुधर्मास्वामी पीने आठ पद पर्यंत तपगछमें निग्रंथ नामे गुणोत्पन्न हुआ ते पीछे संपत्निका निधान जैसां निधिपट्टमे सुस्थित और सुप्रतिबद्ध नामे दो विद्वान् गच्छका नायक हूआ. तिसमें रम्यमूरिमंत्रका कोटी जाप करनेसें तिसका नाम लोकमें 'कौटिक' एसा हुआ त्यारपीछे पंदरमे पदे जैसा चंसूरिनामे यतीश्वर दुआ, त्यारबाद सोलमे पदे सामंतन नामे सूरि दुआ जे सूरिने निःस्पृहपणासे सर्व जगत्को जितलियाथा निर्मम, मद रहित और सदाचार युक्त ऐसा जे सूरिने हृदयमें विद्या और अहंकार, ओ दोनुका वियोग बनवाया ओ सूरि सदाकाल वनमें वासकर रहेते, ओ कारणसे ओ सर्व गुणका स्थानरूप सूरि विजयसिंह नामे जितेंश्यि सूरी दुवा नसका शिष्य सत्यविजय दुआ, सो सर्व नत्तम गुणोसें व्याप्त और विविध शास्त्रोम प्रवीण हुवावा. नसका शिष्य कपूरविजय दुवा सो बोहोत शिष्यवालेथा और शास्त्रकुं जाणनेवाला, सज्जन, बुध्मिान् और वादीरूप कंदमे कुवाडारूपया. नसका शिष्य कमाविजय नामे दुवा सो सदाचारी, शासनकी नन्नति करनेवाला और हमादि गुणोसे संपन्न दुवाथा. उसका पदमें श्रीमान् ‘जिनविजय ' नामे विद्वान् मुनि हुवा. सो मुनिने वादीओका वादरूप इंजालको दणमें जर्जरकीयाथा. उसका पदमें सुबुद्धिमान् और विजयी दुवाश्रा, सो देवोकुं जैसा इं. सेव्य है ऐसा नुत्तम मुनिओकुं सेव्य दुवाया. नुसका शिष्य पद्मविजय दुवा सो धर्मकर्ममें दृढ दुवाथा और ननोने प्राणि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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