Book Title: Agnantimirbhaskar
Author(s): Vijayanandsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 404
________________ शन्द सेवंग प (4) 23 17 नावी नावबी 20 17 . श्रेवार्थी श्रेयार्थी शन् अग्रोयर अग्गोयर 273 चवता चलता 24 शस्त्रपरिज्ञाप्ययन शस्त्रपरिझाध्ययन ចង नपवाल नपवास पापी पानी ឧប០ संवेग श प्रयंजुन प्रयुजन शए नकका नका शएश एक नपर 4 निषेधमी निषेधनी श५ देखनामी देखनानी श विधमार्गके विधिमार्गके श महा मोह 303 धर्मनी धर्मनी 30 // स्तुबह रुतुबह ३गए बैरना बैठना 310 प्राधोयण आलोयण 313 25 गुरुसे सूचना-पृष्ट 7 में 16 पंक्तिमें नीचे प्रमाणे अर्थमें वधारा करके वांचनायज्ञका अवशेष भागकुं खाने वाले संतपुरुषो सर्व पापसे मुक्त होते है. 27 पदंतु परंतु गुससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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