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हितीयखम.
३३५ मे रहे कर बनाया है. कोइ पुरुष जो इस ग्रंथको सविस्तर देखकर मत्सर देखे तो उसमें ग्रंथका दूषपा क्या है ? क्युंके मिष्टस्वादको नहि जाननेवाला गधेडा जखमें मुख माले इससे शखका माधुर्य क्युं चच्या जता है ? बोहोत अमूल्यरत्न एक क्रीमामात्रसें मीलता है परंतु सम्यकरूप अमुतसे युक्त एसा तत्वज्ञान उर्खन्न है. यद्यपि बुखारवाले प्राणीके जल पीडा देनेवाले है, तथापि सोइ जल नष्ण करनेसे नसको पथ्यकारी
होता है.
विस्तारवाले आकाशमें ज्योतिष-तारा चक्र. जबतक फीरतरहै, तबलग बुध्मिानोने प्रतिपादित. एसो ओग्रंथ आबाद रहो.
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इतिश्री तपगच्छीय मुनिश्री मणिविजय गणिशिष्य श्री बुद्धिविजय तच्छिष्य आत्माराम-आनंद विजय विरचिते अज्ञानतिमिर नास्करे
द्वितीयं खंड संपूर्णम् ।
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