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हितीयखंम.
३१७ " एकस्स कनधम्मो सच्छेद म पयारस्त । किंवा करे को परिदर नकंदमकजंवा ॥१॥ कत्तो सुतथ्यागम पनि पुग्ण चोशणे वाकस्स । विणय या वञ्चं आराहण याव मरणते ॥ २ ॥ पिल्ले जेसण मिको पश्न पमया जणान निञ्चनयं । कानमणो विप्रकचेन तर कानण बहु मझे ॥ ३॥ उच्चार पासवण वंत मुत मुच्छा इमो दिन को । सहव जाल विदथ्यो निखिव इच कुण नाई ॥४॥ एमदिव संपि वहुया सुदाय असुहाय जीव परिणामा । इक्को असुद परिणो चश्य प्रालंबणं ला" मित्यादिना निषिद मप्ये काकित्वं । इनका नावार्थ. एकले विचरणेवाले साधुके धर्म नहि, स्वच्छंदमति होनेसे. एकला क्या करे; कैसे एकला अकार्य परिहरे; एकलेको सूत्रार्थका आगम नहि. किसको पूरे एकलेको कौन शिक्षा देवे; एकला विनय वैयावृत्तसे रहितहे. मरणांतमें आराधना न करशके. एषणा न शोधी शके. प्रकीर्ण स्त्रीओंसें तिसकों नित्य जय है. बहुत साधुओंमें रहनेवालाके मनमें अकार्य करणेकी इच्छगनी होवे तोनी नहि कर शक्ता है. नच्चार, विष्टा, मूत्र, वमन, पित्त, मूर्ग इन करके मोहित एकला कैसें पात्रांके हाथ लगावे. कैसे पाणी लावे. जेकर जगत्की अशुचि न गिणेतो जगतमें जिन मतका नडाद निंदा करावे. एकला एक अवलंबन खोटा लेके सन्मार्गसे भ्रष्ट हो जावे. इत्यादि गाथाओसें साधुको एकला रहणा निषेध करा है. तथा एकल जो होना है तो स्वबंदसें सुख जानके होता है तिसकी देखादे. ख अन्यअन्य मूढ, विवेक विकलनी एकले होते है. ऐसी प्रनवस्था करते है. और जो पूर्वोक्त गुरु गच्छमें रहते है वे पू. ोक्त सर्व दूषणोंसे रहित होते है, गुरूकी सेवा करणेसें. इत्यादि अन्यन्नी गुरुग्लान, बाल, वृक्षदिकोंकी विनय वैयावृत्त करणे. से सूत्रागम कर्म निर्जरादि अनेक गुण होते है. जो विपर्यय
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