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द्वितीयखम
tre वेश्याकी तरें निराशंस होके गृहवास पाले ऐसा स तरमा नेद लिखते है. वेश्याके तरें बोमी है टकाववाली बुद्धि, जैसे वेश्या निर्धन कामुकसें जब विशिष्ट लाज नहि जानती है और किंचित लाजमी नदि जानती है तब विचारती है, आज वा aa aसको बोम दनुंगी तब तिसका मंदादरसे उपचार करती है. ऐसेही नाव श्रावकनी आज वा कल्ल मैनें यह संसार बोग देना है ऐसे मनोरथ वाला परकीय पर संबंधी घर मानके गृहवास पालन करे, किस वास्ते ? संसार बोडनेकीतो शक्ति नहि है, इस वास्ते शिथिल जाव मंदादरवाला हुआ थका संयमके न प्राप्त दोनेसेंजी कल्याणको प्राप्त होता है, वसुश्रेष्टिसतसिः श्वत् इति सत्तरमा नेद.
इन
जाव
इति कथन करे सतरे प्रकारके नाव श्रावकका जेद. पूर्वोक्त गुण युक्तको जिनागममें जाव श्रावक कहा है. श्रावक कहो वा व्य साधु कहो. श्रागम में जाव श्रावककों व्य साधु कहा है. यदुक्तं " मिनपिंको दव्वघडो सुसावत्र तह दव्व साहुति " अर्थ - मृत पिंड दै सो व्य घट है और नाव श्रावक है सो व्यसाधु है. इति जाव श्रावक धर्म निरूपणं संपूर्ण.
भावसाधुका स्वरूप.
अथ भावसाधुका स्वरूप लिखते है. पूर्वोक्त जाव श्रावकके गुण उपार्जनेंसे शीघ्र नाव साधुपको प्राप्त होता है. यह उसर्ग है एकांत नदि, इनके विना उपार्जेजी साधु व्यवहार नयके मतसें दो शक्ता है. परंतु यहां जावसाधुद्दीका स्वरूप लिखते है. नाव साधु कैसा होता है सो लिखते है. निर्वाण साधक यो गांको जिस वास्ते साधते है, निरंतर और सर्व जीवो विषे समनाववाला है तिस वास्ते साधु कहते है. कमादि गुण संपन्न
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