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हितीयखंझ. पीके हुए विधि पूर्वक धमार्नुष्टानमें प्रवर्ते. सामग्रीके अन्नावसें विधि न हो शके तो विधिका मनोरथ न त्यागे, प्रविधि करता दुआ विधिका मनोरथ करे तोनी आराधक है ब्रह्मसेन श्रेष्टिवत् इति प्रवचन कुशलका पांचमा नेद.
__अथ व्यवहार कुशलनामा बग नेद लिखते है. देश सुस्थितःस्थितादि, काल सुनिक ऽनिदादि, सुलन उर्लन्नादि व्य हृष्ट स्नानादि लाव, इनको अनुरूप योग्य जाने. गीतार्थीका व्यवहार जो जहां देशमें, कालमें, जावमें, वर्तमान गीतार्थाने नत्सर्गापवादिके जानकारोने गुरु लाघव ज्ञानमें निपुणोने जो आचरण करा है व्यवहार तिसको दूषित न करे. ऐसा व्यवहारमें तथा ज्ञानादि सर्व नावमें कुशल होवे, अन्नयकुमारवत् . इति प्रवचन कुशलका व्यवहार कुशल बग नेद.
तिसके कहनेस कथन करा प्रवचन कुशल नाव श्रावकका ठा लिंग ६.
यह नक्त स्वरूप प्रवचन कुशलके बन्नेद. नाव श्रावकके लकण क्रियागत कहे है, जैसे धूम अनिका लिंग है ऐसेही यह नाव श्रावकके लक्षण कहे है.
प्रश्न- तुम तो यह लक्षण क्रियागत कहते हो क्या अन्य नी लिंग है ?
नत्तर-नावगत सतरे लिंग अन्यत्नी है वे नी यहां लिखते है.
स्त्री, इंडिय, अर्थ, संसार, विषय, प्रारंन, गृह, दर्शन, गाडरिकादी प्रवाह, आगम पुरस्सर प्रवृत्ति, दानादिकमें यथाशक्ति प्र. वर्त्तना धर्मानुष्टान करता हुआ लज्जा न करे, सांसारिक नाव, रक्तष्ठि न होवे, धर्म विचारमें मध्य स्वनावे होवे, धन स्वः
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