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प्रथमखम. चितिवसोर्धारा १७--१७ सौत्रामणी १ए----१ अश्वमेध ३२
अश्लीलनाषण ३३ पशुप्रकरण २५ अश्वमेध २५--२६-२७---- पुरुषमेध ३०-३१ सर्वमेध ३२--३३ पितृमेध ३४--३५ शांतिपाठ ३६ प्रायश्चित्त ३७--३०--३॥ ज्ञानकांम ४०
इस वेद नपर नाष्य है. एक महिधरका, दूसरा मम्हटका तिसरा सायन, चौथा कर्क, इनके विना वेिदांग और देवयाझिक ये दो दूसरे है, ऐसे कहनेमें आता है, इस वेदमेसे कितनेक वाक्य. नीचे लिखे जाते है.
१ ऋतस्य वा देवहविः पाशेन प्रतिमुंचामिधर्षा मानुषः ६ अध्या०
हे देव दविः देवानां हविरूपयज्ञस्य पाशेन त्वां प्रतिमुंचामि। एवं पशुं संबोध्य मित्रे समर्पयति । व्यामध्यपरिमितया कुशक तया रज्या नागपाशं कृत्वा श्रृंगयोरंतराले पशुं गगं बध्नाति पाशं प्रतिमुंचेदिति । सूत्रार्थः महीधर वेददीपे ६ षष्टे अध्याये ॥
नावार्थ-पशुकों मानकी रस्सीसे यूपके बांधणा और पीले शामित्र अर्थात् मारणेवाले पुरोहितको सौंप देना ॥ और पशुकों कहना तूं देवका नद है. ऐसें संबोधन करणा.. २ देवस्य वा सवितुः ०६ अध्यायमे
यूपे पशुं बधाति इति सूत्रार्थः यूपमें पशुबांधे यह सूत्रार्थहै. ३ अग्नीषोमाभ्यां जुष्टं नियुनज्मि ६ अध्याये अनिषोमदेवताभ्यां जुष्ठमनिरुचितं पशुं नियुनज्मि बनामि।
अर्थ-अमि पोम देवतांकों जिसकी रुचि है ऐसे पशुकों बांधताहुं.
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