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अज्ञान तिमिरझास्कर.
खानेंमं प्राणी अंग देतु दीना सो प्रसिद्ध, विरुद्ध अनेकांतिक दोष करके ष्ट दोनेसें सुनयें योग्य नंदि है. तथादि, निरंश वस्तुके दोनसे वो तो मांस साव्य है, और वो दि प्राणी अंग देतु है, इस वास्ते प्रतिज्ञार्थ एक देश प्रसिद्ध देतु है. जैसें, नित्य शब्द है, नित्य दोनेसे, जेकर मांससें प्राणी अंग भिन्न है तब तो अतिशय करके हेतु प्रसिद्ध है, व्यधिकरण दोनेसें. जेसे " देवदत्तस्य गृहं काकस्य काष्णर्यात्. " तथा यद देतु अनेकांतिकमी है, कुत्ते यादिके मांसको लक्ष्य दोनेसे. तथा प्रतिज्ञा ऐसी लोक विरुद्ध है, मांस अन्न एक करने. इसी तरें मांस और अन्न एक सरीखे नहि. इस वास्ते मांस खाने में महा पाप है. दयालु दोवे तो मांस खाना वर्जे और धर्ममां अधिकारीजी दोवे इति दशमो गुणः
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इग्यारमा मध्यस्थ सोम दृष्टि नामा गुण लिखते है. मध्यस्थ जो किसी मतका पक्षपाती न होवे. सोमदृष्टि, प्रद्वेषके श्रावसें दृष्टि श्रद्धा है जिसकी सो मध्यस्थ सौम्यदृष्टि, कहते है. सर्व मतोंमें राग द्वेष रहित ऐसा पुरुष धर्मका विचार नाना पाखंरु मंडली रूप दुकानोंमें स्थापन करा है धर्मरूप का जिनोंने ऐसे सर्व मतोंमेंसें यथावस्थित सगुण, निर्गुण अल्प बहुत्व गुण करके जेते व्यवस्थित है तिसको, कनक परीक्षा निपुण विशिष्ट कनकाधिक पुरुषवत् जानता है और ज्ञानादि गुणो के साथ संबंध करता है, और गुणोंके प्रतिपक्षभूत दो पांको दूरसें त्याग देता है. सोमवसु ब्राह्मणवत् इति एकादशमो गुणः
बारमा गुणानुरागी गुणका स्वरूप लिखते है, धार्मिक arath गुणो विषे राग करे अर्थात् गुणवंत यति, साधु श्रावका
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