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अज्ञानतिमिरनास्कर. हारादि क्रिया करता है वो जेकर अप्रमत्तपणेसे करे तो तिसको हिंसक न कहिए, और जे साधु वीतरागकी आज्ञासे अप्रमत्त वर्त्तते है वे सर्व अहिंसक परम दयालु है. ऐसे मुनि तरण तारणवाले है.
पूर्वपक्षः-हम ऐसे कहते है कि सर्व जीव मांसाहारी है क्योंकि सर्व जीव अन्न, वनस्पति मट्टी, मांस प्रमुख खाते है वे सर्व, जीवाके शरीर खाते है. जे जीवांके शरीर है वे सर्व मांस है. इस बातको हम अनुमान प्रमाणसेनी सिह करते है.
भक्षणीयं भवेन्मांसं प्राण्यंगत्वेन हेतुना।
ओदनादिवदित्येवं कश्चिदाहेति तार्किकः॥१॥
अर्थ-नात प्रमुखकी माफीक मांस नक्षण करने योग्य है. प्राणीका अंग होनेसें. इत्यादि.
नत्तरपकः-यह पूर्वोक्त कहना अयोग्य है क्योंकि त्रस जी. वांका मांस अन्नकी तुल्य नहि हो सकता है. अन्न जलसें नत्पन्न होता है. अन्न अस्पष्ट चैतन्यवाले जीवांका शरीर है, और मांस स्पष्ट चैतन्यवाले जीवांका शरीर है. अन्नके जीव मरते हुए वासमान नहि देखनेमें आते है परंतु त्रस जीवोकों मारती वखत बहुत त्रास नप्तन्न होता है. हरेक दयालु जीवोका वो त्रास देखकर हृदय कंपायमान होता है. अन्न खानेवाला अत्यंत निर्दय नहि होता है. मांस खानेवाला अत्यंत निर्दय होता है, अनके खानेवालाकों को कसाइ नहि कहते है. पंचेंशिय पशु. ओको मारके खानेवालेको लोकमेंनी कसा कहते है. इत्यादि अनेक युक्तियोसें अन्न खाना और मांस खाना तुल्य नहि दो शकता है. जेकर नौला जीव हठमें ऐसाही कहै, अन्नन्नो प्रादीत अंग है, और मांसन्नी प्राणीका अंग है, इस वास्ते दोनों
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