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प्रश्रमखम. राजेका सर्वपाप गया. अन्ह अंगोंके मांसकों सोले याझिकोंर्ने मिलके हवन करा. तिस सन्नामें कृष्ण, बलन, प्रद्युम्न वगेरेनी थे. तिस पीठे ब्राह्मणोंकि पूजा और दान करा. इसतरें धर्मराजाके घोमेका यज्ञ दूा. तिसमें धनधान्य रत्न और दारू पीनेको बहुत दीना था. और घीका कर्दम दूआ था और अन्नके पर्वत दूये थे. और जनावर इतने मारेथे कि तिनकी संख्या नहीं. ऐसा यज्ञ करनेसें राजाका सर्व पाप गया, यह कथा Gए में अध्यायमें अश्वमेध पर्वमें है.
रामायण नामक काव्य ग्रंथ है. सो मूल वाल्मीक ऋषिका दूआ है. और तिस नपरसें अनेक रामायण करी है. तिनमें मुख्य अध्यात्मरामायण है. तिसके नुत्तरकांडमें रामचंजीने रावणको जीत सीताको ख्याकर अयोध्यामें आये, तव विश्वामित्र, नृगु, अंगिरस, वामदेव, अगस्ति इत्यादि ऋषि रामचंइजीको आशिर्वाद देनेको आये तिस वखत मधुपर्क पूजा रामचं
जीवें ऋषियोंकी करी सो श्लोक ॥ " दृष्टवा रामो मुनीन् शीघ्रं प्रत्युत्थाय कृतांजलिः। पाद्याा दिनिरापूज्य गां निवेद्य ययाविधि" ॥ उत्तरकांड अ० १ श्लोक १३ ॥ टीका “ गां मधुपर्कार्थे वृषन्नं च महोदं वा महाजं वा श्रोत्रियायोपकल्पयेदिति स्मरणात् " ॥
अर्थ-रामचंजी मुनीयोंकों देखके खमा दूआ, हाथ जोमके पग धोनेको पाणी और इत्यादि पूजा करके विधिसे गाय निवेदन करी. इस नपर टीकाकारं लिखता है कि मधुपर्क पूजा करने वास्ते गाय अथवा बलद और बकरा देना चाहिये, ऐसी विधि स्मृतिमें कही दूर है.
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