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ब्रथमखम.
जए वैष्णव मार्ग तिसके पीछे निकला है. और वैष्णवमतमें मुख्य चार संप्रदाय है. रामानुज १ निवार्क २ मध्व ३ विष्णुस्वामी ५.इन चारों जणाने शंकरस्वामीका अद्वैतमत स्थापन करा दूा खंमन करके दैत मत चलाया. इनोने बहुत आधार पुराणोंका लीना, लीना, और श्रुतिके आधार कास्तै श्नोंने कितनीक नवी नपनिषद बना है.
अनेक संपदा- जैसें रामतापनी, गोपालतापनी, नृसिंहतापनी इयकी उत्पत्ति. त्यादि बना लीनी. परंतु असली वेदके मंत्रनागमें नपासना विषयक कुच्छन्नी मालुम नहीं होता. तिसमें जो नुपासना है सो अग्निहारा और पांच नूतादिककी है.परंतु पुराणोंके अवतारोंकी नहीं. पुराणोंके अवतारोंकी उपासना तो पुराण हुआ पीछे चली है. उपास्य देवता- आगे नपासनाके इतने माले फूटे है जिनकी गिकी जुदी जुदी मान्यता.
" नती नही. को शिवमार्गी, कोई विष्णु, कोइ मपपती, कोइ राधाकृष्ण, कोइ बालकृष्ण, को हनुमान इत्यादि अपणे अपये नपास्य देवतायोंकों परब्रह्म कहते है, और इन देवतायोंको नचा नीचा गिनता है. तद्यया॥" गणेशं पूजयेद्यस्तुविघ्नस्तस्यनबाध्यते । आरोग्यार्थे च ये सूर्यं धर्ममोक्षाय माधवं ॥ शिवं धर्मार्थमोक्षाय चतुर्वर्गाय चंमिकां ॥नावार्थ-जे गणेशकी पूजा करे ननकुं विघ्न बाधा करते नहीं आरोग्यके वास्ते सूर्यकी, धर्म तथा मोदके वास्ते विष्णुकी धर्म, अर्थ, और मोकके वास्ते शिव और चतुर्वर्गके वास्ते चंमीकी पूजा करना. पीठे अनेक संप्रदाय वालोंने अपने अपने संप्रदायके चिन्द ठहराये. शिवमार्गीयोंने नस्म, रुज्ञक, बाणलिंग, इत्यादिक रचे और वैष्णवोंने तप्त मुज्ञ, तुलसी, गापीचंदन, शालिग्राम इत्यादिक चिन्द बनाये. वे चंदन विष्णुपादा
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