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द्वितीयखर.
२०१ श्री महावीरके निर्वाण पीने जब ६०ए वर्ष गये तब आठमा महानिन्दव, महाविसंवादी शिवनूति बोटिक हुआ. तिसकी नत्पत्ति ऐसी है.
रणवीरपुर नगरके राजाका शिवनूति नामा बडा योक्षसेवक था. राजाको बमा वल्लन था. एक दिन अपनी स्त्रीसें गुस्से हो कर, और राजाको विना पुढे श्रीकृष्णमूरि आचार्यके पास दीक्षा ले लीनी, तिहांसे अन्यत्र विदार कर गया. कालांतरमें फिरकर तिसी नगरमें गुरुके साथ आया, तब राजाने. अपने पास बुलाया. दर्शन किया, और एक रत्नकंबल तिसको दीया, तब तिसने गुरुको दिखलाया. गुरुने कहा, इतने मोलका वस्त्र साधुको रखना योग्य नहि, नला अब तुं इसको औढ ले, तब तिसने तिस रत्नकंबलको बांधके रखे लिया; जब कोई पास न होवे तब तिस रत्नकंवलको खोलके देख लेता था, ममत्वसें खुशी मानता था. एक दिन गुरुने देखा तब विचाराकि इसको रत्नकंबल पर ममत्व हो गया है, तब गुरुने तिसका विना पुरे तिस कंबलके टुको क रके पग लुग्नेको साधुओको दे दिये. जब शिवनूतिने कंबलके टुको देखे तब बहुत क्रोधमें आया, परंतु गुस्सेंसें कुच्छ जोर न चला. एक दिन श्रीकृष्णमूरि आचार्यनें जिनकल्पका वर्णन किया यथा जिनकल्पी मुनि बाउ तरेंके होते है तिनमेंते सर्वोत्कृष्ट जिन कल्पीको दो उपकरण होते है. रजोदरण १ मुखवस्त्रिका २ तब शिवनूति सुनके बोला के जिनकल्पीका मार्ग आप क्यों नहि पालते हो? तब श्री कृष्णमूरिने कहा-श्रीजंबूस्वामिके निर्वाण पीछे नरतखममें दस बोल व्यवच्छेद हो गये है
___ यथाख्यात चारित्र १ सूक्ष्मसंपराय चारित्र २ परिहारविशुदि चारित्र ३ परमावधि ज्ञान । मनःपर्याय ज्ञान ५ केवल
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