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हितीयखम. इह लोक विरुद है, और परलोकमें नरकादि गतिका देनेवाला है. यउक्तं स्थानांग सिखंते-" चनहिंगरोहिं जीवा नेरया उत्ताए कम्मंप करें ति तं जहा" इत्यादि. इहां तिसरे पदमें ' कुणिमा होणं' अर्थात् मांस खाने करके नरकायु उपार्जन करता है तथा “ मांसाहारिणः कुतो दया.” इस वास्ते मांसका. खाना उन्नय लोक विरु६ है. ... मदिराका पान करना यहनी नन्नय लोक विरुइ है.मदिरा पीनेसे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है. मद्य पीनेवालेके मुहमें कुत्ते मुतते है. मदिरा पीनेवाला माता, बहिन, बेटीसेंन्नी कुकर्म करता है. ऐसी कौनसी बुरी बात है जो मदिरा पीनेवाला न करे. मदिरा पीनेवाला मरके नरक गतिमें जाता है. इस वास्ते मद्य पीना उन्नय लोक विरुक्ष है.
वेश्यागमन करनेवालेकी कोश्नी जाति नहि; नंगी, चमार, कोली मुसलमीन आदि सर्वकी जुठ खानेबाला होता है. इस वास्ते ननकी कोश्नी जाति नहि. वेश्यागमनसे धनका नाश होता है, बुद्धि प्रष्ट होती है, आबरु नहि रहती है, गरमीके रोगसे शरीर गल जाता है, तिस्से कुष्ठ, जगंदर, जलोदरादि महा नयंकर रोग हो जाता है तथा परलोकमें उर्गति होती है. इस वास्ते वेश्यागमन करना नन्नय लोक विरुइ है.
पापदि अर्थात् शिकार करना यहनी उन्नय लोक विरु है, क्योंकि कगेर हृदय विना शिकार नहि हो शकता है. शिकारीको दया नहि, न्याय नहि, धर्म नहि और परलोकमें उनकी नरक गति होती है, इस वास्ते शिकार करना उन्नय लोक विरुइ है.
चोरी और परस्त्रीगमन ये दोनो तो सर्व लोकोमें बुरे काम
वास्ते जनकतमीन आदि सालकी कोश्नी जा
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